Thursday, April 26, 2018
दिमागी शक्ति बढ़ाने की मशहूर जड़ी-बूटी
1.ब्राह्मी
ब्राह्मी दिमागी शक्ति बढ़ाने की मशहूर जड़ी-बूटी है। इसका एक चम्मच रस रोज
पीना लाभदायक होता है। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है।
ब्राह्मी मे एन्टी ऑक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति बढऩे लगती
है।
2. दालचीनी:-
दालचीनीके 10
ग्राम पाउडर को शहद में मिलाकर चाट लें। कमजोर दिमाग की अच्छी दवा है।अदरक
,जीरा और मिश्री तीनों को पीसकर लेने से कमजोर याददाश्त की स्थिति में लाभ
होता है।
3.बादाम:-
बादाम 5 नग रात को पानी में गलाएं। सुबह छिलके
उतारकर बारीक पीस कर पेस्ट बना लें। अब एक गिलास दूध और उसमें बादाम का
पेस्ट घोलें। इसमें 2 चम्मच शहद भी डालें और ग्रहण करें। यह मिश्रण पीने के
बाद दो घंटे तक कुछ न लें।
4.अखरोट :-
अखरोट भी स्मरण शक्ति बढाने में सहायक है। इसका नियमित उपयोग हितकर है। 20 ग्राम अखरोट और साथ में 10 ग्राम किशमिश लेना चाहिए।
बालों को काला करना
1. आधा कप दही में 10 पिसी हुई कालीमिर्च और 1 नींबू निचोड़ मिला लें और इसे बालों पर लगाकर 20 मिनट तक रहने दें। इसके बाद सिर को धो लें। इससे बाल काले और मुलायम हो जाते हैं।
2. 100 मिलीलीटर दही में 1 ग्राम बारीक पिसी हुई कालीमिर्च को मिलाकर सप्ताह में एक बार सिर को धोयें और बाद में गुनगुने पानी से सिर को धो डालें। इससे बालों का झड़ना बंद हो जाता है और बालों में कालापन और सुन्दरता देखने को मिलती है।
सिर में दर्द
1. इलायची को पीसकर मस्तिष्क पर लेप करने से एवं बीजों को पीसकर सूंघने से सिर दर्द में राहत मिलती है।
2. पानी के साथ छोटी इलायची को पीसकर सिर पर लेप की तरह से लगाने से सिर दर्द खत्म हो जाता है।
3. छोटी इलायची को महीन पीसकर सूंघने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
4. पानी के साथ लाल इलायची के छिलकों को घिसकर सिर पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
5. 1 बड़ी इलायची, 2 छोटी इलायची और आधा ग्राम कपूर को गुलाब जल में मिलाकर लेप की तरह सिर या माथे पर लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
6. इलायची के तेल को पिपरमिन्ट, कपूर और गाय के घी को मिलाकर सिर के आगे के भाग में लगाने से तेज सिर का दर्द दूर हो जाता है।
फोड़े-फुन्सी
1. चंदन को पानी में घिसकर लगाने से फोडे़-फुन्सी और घाव ठीक हो जाते हैं।
2. फोड़े और फुंसियों पर लाल चंदन का लेप करने से ये जल्दी ही ठीक हो जाती हैं।
खुजली
1. चंदन के तेल को नींबू के रस में मिलाकर लेप करने से खुजली समाप्त हो जाती है।
2. दूध के अन्दर चंदन या नारियल का तेल और कपूर मिलाकर लगाने से खुजली दूर हो जाती है।
हारनियाँ एवं गठिया वात (सन्धिवात रोग)
हारिनिया-
1। केसुला के फूलों को उबालकर उससे बफारा दिया जाए, वही फूल हल्के गरम हारनिया पर बाँध दे तो जाता है हारनिया ठीक हो।
2। नूरानी तेल की हल्की मालिश करने से लाभ होता है।
3। हार श्रृंगार के पत्तों का काढ़ा पिलाएँ।
4। '' वृद्धि वाटिका वटी '' (वैद्यनाथ कं। की उम्रानुसार 1 से 2 गोली सुबह शाम देने से अण्डकोष वृद्धि एवं हारिनियाँ जाते है दोनों ठीक हो।
मोटापा कम करने के लिए
1। प्रात: काल चावलों का मांड नमक मिलाकर पीसे से ठीक होता है।
2। गिलोय चूर्ण ± त्रिफला दोनों 3-3 ग्राम चासनी से सेवन करें।
3। भोजपत्र की पत्ती 10 ग्राम की चाय उबालकर प्रतिदिन पीने से मोटापा कम होगा।
4। छाछ के साथ 1/2 चम्मच त्रिफला चूर्ण लेते रहे मोटापा ठीक होगा।
5। पुनर्नवा 10 ग्राम जड़ी, त्रिफला 10 ग्राम दोनों का काड़ा बनाकर उसमें पुनर्नवा मण्डूर भस्म 1/2 से 1 ग्राम मिलाकर पीने से मोटाफा दूर होता है। सूजन ठीक होती है। रक्त वृद्धि होती है।
हडि्डयों में खोखलापन होना (Bone hollowness)
वैसे तो हडि्डयों में खोखलेपन का रोग किसी भी उम्र के स्त्री-पुरुष को हो सकता है लेकिन यह फिर भी ज्यादातर यह रोग 50 वर्ष के उम्र से ज्यादा वर्ष के लोगों में पाया जाता है। यह रोग उन स्त्रियों को भी अधिक होता है जो स्त्रियां रजोनिवृति (मासिकधर्म का आना बंद हो जाना) की अवस्था में होती है।
हडि्डयों में खोखलापन होने के लक्षण-
हडि्डयों में खोखलेपन के रोग से पीड़ित रोगी के पैरों तथा कमर में दर्द होने लगता है।रोगी व्यक्ति की कमर झुक जाती है और उसे चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।रोगी के कूल्हे की हड्डी कमजोर हो जाती है।रोगी की मुड़ने या घूमने की शक्ति कम हो जाती है और कमर की मांसपेशियों में ऐंठन सी होने लगती है।इस रोग से पीड़ित रोगी की हड्डी जरा सा ही झटके लगने से टूट जाती है।
हडि्डयों का खोखलापन होने का कारण-
जो व्यक्ति असंतुलित भोजन का सेवन करता है उसकी हडि्डयों में खोखलापन होना शुरू हो जाता है।शरीर में कैल्शियम एवं विटामिन `डी´ की कमी हो जाने के कारण भी हडि्डयां खोखली हो जाती हैं।40 उम्र से ऊपर की स्त्रियों का जब मासिकस्राव बंद हो जाता है तो उनकी हडि्डयां खोखली हो जाती हैं।
हडि्डयों में खोखलापन हो जाने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
इस रोग से पीड़ित रोगी को 1 सप्ताह तक फलों तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए तथा भोजन में अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए।रोगी व्यक्ति को संतुलित आहार (भोजन) का सेवन करना चाहिए।सफेद तिलों का दूध रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन पिलाने से कुछ ही दिनों में हडि्डयों में खोखलेपन का रोग ठीक हो जाता है।हडि्डयों में खोखलेपन से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन काष्ठज फल का सेवन करता है तो उसका यह रोग ठीक हो जाता है।इस रोग से पीड़ित रोगी को तला-भुना, दूषित भोजन, चीनी, मिठाई तथा मैदा आदि नहीं खाने चाहिए।इस रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में हडि्डयों में खोखलेपन का रोग ठीक हो जाता है।
रीड की हड्डी और जोड़ो से सम्बंधित टिप्स
कमर दर्द
अश्वगंधा
चूर्ण तथा सौंठ चूर्ण बराबर मात्रा में मिला लें. इसमे से आधा चम्मच चूर्ण
सुबह साम गुनगुने पानी से सेवन करें.इस प्रयाग से कमर दर्द में लाभ होता
है.
जोड़ो का दर्द , गठिया व कमर दर्द:-
हल्दी मेथी दाना तथा सौंठ 100-100 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण कर
ले.इन्हे मिलाकर 1-1 चम्मच नास्ते व साम के खाने के बाद गुनगुने पानी से
ले.इसके सेवन से जोड़ो के दर्द ,गठिया, कमर दर्द आदि में बिसेष लाभ होता है .
अखरोट से उपचार
1. सफेद दाग : अखरोट के निरन्तर सेवन से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।
2. फुन्सियां : यदि फुन्सियां अधिक निकलती हो तो 1 साल तक रोजाना प्रतिदिन सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ हो जाता है।
3. दाद : सुबह-सुबह बिना मंजन कुल्ला किए बिना 5 से 10 ग्राम अखरोट की
गिरी को मुंह में चबाकर लेप करने से कुछ ही दिनों में दाद मिट जाती है।
4. होठों का फटना : अखरोट की मिंगी (बीज) को लगातार खाने से होठ या त्वचा के फटने की शिकायत दूर हो जाती है।
5. विसर्प-फुंसियों का दल बनना : अगर फुंसिया बहुत ज्यादा निकलती हो तो पूरे साल रोजाना सुबह 4 अखरोट खाने से बहुत लाभ होता है।
मिर्गी रोग के घरेलू उपचार
१. सफ़ेद पेठे (जिसकी मशहूर आगरा
वाली मिठाई बनती है) का
रस ५० मिलीलीटर में ३
छोटे चम्मच मुलहठी चूर्ण
अच्छी तरह मिलाएं और दिन में एक
बार लें
२. १०० मिलीलीटर दूध
और १०० मिलीलीटर
पानी मिला कर १०-१५ मिनट उबालें।
४-५ लहसुन की कलियों का रस निकाल
कर दूध-जल के उबले मिश्रण में अच्छे तरह से
मिलाएं और दिन में एक बार लें ।
दौरे के समय रोगी के मुख में कुछ न
डालें
60 दिनों में शरीर को बनाएं बलवान और चमकदार
माना कि शरीर की बजाय गुणों का मूल्य अधिक होता है लेकिन यह भी इतना ही सच है कि इंसान की पहली पहचान उसे देखकर ही बनती है। आन्तरिक व्यक्तित्व का गुणवान होना अच्छी बात है, लेकिन इससे भी बढिय़ा बात तो तब होगी कि आप अंदर और बाहर दोनों ही स्तरों पर आकर्षक और प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक बनें। तो आइये चलते हैं एक ऐसे बेहद आसान और 100 प्रतिशत असरदार आयुर्वेदिक नुस्खे की तरफ जो शर्तिया तौर पर आपके शरीर को ताकतवर, चमकदार और तेजस्वी बनाता है....
किसी प्रामाणिक और भरोसे की जगह से अश्वगंधा, विधारा, शतावरी 50-50 ग्राम लेकर पीस लें, अब इसमें 150 ग्राम मिश्री मिलाकर रोज प्रात: एक चम्मच चूर्ण पानी या गाय के दूध से खाते रहें। खटाई, अधिक मिर्च-मसाले, बेहद गर्म व बहुत ठंडी चीजों से कुछ दिनों तक दूरी बनाकर रखें। यदि आपको कब्ज की शिकायत न हो तो यकीनन इस आयुर्वेदिक नुस्खे से मात्र 60 ही दिनों में आपका काया कल्प हो जाएगा।आपको देखकर सहसा लोगों को अपनी आंखों को भरोसा ही नहीं होगा।
जामुन के औषधीय गुण
बहुत से पेड़ ऐसे होते है जिसका हर हिस्सा बड़ा महत्वपूर्ण होता है ऐसा ही है जामुन का पेड़ जिसके पत्ते, फल, गुठली, छाल सभी बहुत उपयोगी होते है,जामुन का उपयोग हम फल के रूप में करते है परन्तु फल के साथ-साथ इसमे बहुत औषधीय गुण होते है.तो आईये जाने जामुन के औषधीय गुणों के बारे में -
जामुन का रस
१. शारीरिक दुर्बलता - जामुन का रस, शहद, आँवले या गुलाब के फूल का रस बराबर मात्रा में मिलाकर एक-दो माह तक प्रतिदिन सुबह के वक्त सेवन करने से रक्त की कमी एवं शारीरिक दुर्बलता दूर होती है। यौन तथा स्मरण शक्ति भी बढ़ जाती है।
२. हैजा में - जामुन के एक किलोग्राम ताजे फलों का रस निकालकर ढाई किलोग्राम चीनी मिलाकर शरबत जैसी चाशनी बना लें। इसे एक ढक्कनदार साफ बोतल में भरकर रख लें। जब कभी उल्टी-दस्त या हैजा जैसी बीमारी की शिकायत हो, तब दो चम्मच शरबत और एक चम्मच अमृतधारा मिलाकर पिलाने से तुरंत राहत मिल जाती है।
३. कब्ज में - जामुन के कच्चे फलों का सिरका बनाकर पीने से पेट के रोग ठीक होते हैं। जामुन का सिरका भी गुणकारी और स्वादिष्ट होता है,अगर भूख कम लगती हो और कब्ज की शिकायत रहती हो तो इस सिरके को ताजे पानी के साथ बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और रात्रि, सोते वक्त एक हफ्ते तक नियमित रूप से सेवन करने से कब्ज दूर होती है और भूख बढ़ती है।
जामुन के पत्ते
१. - विषैले जंतुओं के काटने पर जामुन की पत्तियों का रस पिलाना चाहिए। काटे गए स्थान पर इसकी ताजी पत्तियों का पुल्टिस बाँधने से घाव स्वच्छ होकर ठीक होने लगता है क्योंकि, जामुन के चिकने पत्तों में नमी सोखने की अद्भुत क्षमता होती है।
२. - जामुन के पत्तों का रस तिल्ली के रोग में हितकारी है. जामुन पत्तों की भस्म को मंजन के रूप में उपयोग करने से दाँत और मसूड़े मजबूत होते हैं।
जामुन की छाल
१ . गले के रोगों में - गले के रोगों में जामुन की छाल को बारीक पीसकर सत बना लें। इस सत को पानी में घोलकर 'माउथ वॉश' की तरह गरारा करना चाहिए। इससे गला तो साफ होगा ही, साँस की दुर्गंध भी बंद हो जाएगी और मसूढ़ों की बीमारी भी दूर हो जाएगी। मुंह में छाले होने पर जामुन का रस लगाएँ। वमन होने पर जामुन का रस सेवन करें।
२. अपच में - जामुन के वृक्ष की छाल को घिसकर कम से कम दिन में तीन बार पानी के साथ मिलाकर पीने से अपच दूर हो जाता है।
३. गठिया में - गठिया के उपचार में भी जामुन बहुत उपयोगी है। इसकी छाल को खूब उबालकर बचे हुए घोल का लेप घुटनों पर लगाने से गठिया में आराम मिलता है।
४. रक्त सम्बन्ध बीमारियों में - जामुन के वृक्ष की छाल को घिसकर एवं पानी के साथ मिश्रित कर प्रतिदिन सेवन करने से रक्त साफ होता है। जामुन के पेड़ की छाल को गाय के दूध में उबालकर सेवन करने से संग्रहणी रोग दूर होता है।
जामुन की गुठली
१. मधुमेह में - जामुन की गुठली चिकित्सा की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी मानी गई है। इसकी गुठली के अंदर की गिरी में 'जंबोलीन' नामक ग्लूकोसाइट पाया जाता है। यह स्टार्च को शर्करा में परिवर्तित होने से रोकता है। इसी से मधुमेह के नियंत्रण में सहायता मिलती है जामुन और आम का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से मधुमेह के रोगियों को लाभ होता है।
२. स्त्रियों में रक्तप्रदर की बीमारी में जामुन की गुठली के चूर्ण में पच्चीस प्रतिशत पीपल की छाल का चूर्ण मिलाकर एक-एक चम्मच की मात्रा में दिनभर में तीन बार ठंडे पानी के साथ लेने से लाभ मिलता है।
३. पेचिश में - जामुन की गुठली के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो से तीन बार लेने से काफी लाभ होता है।
४. पथरी में - पथरी बन जाने पर इसकी गुठली के चूर्ण का प्रयोग दही के साथ करने से लाभ मिलता है।
जामुन का फल
१. त्वचा सम्बन्धी रोगों में - जामुन में उत्तम किस्म का शीघ्र अवशोषित होकर रक्त निर्माण में भाग लेने वाला तांबा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। यह त्वचा का रंग बनाने वाली रंजक द्रव्य मेलानिन कोशिका को सक्रिय करता है, अतः यह रक्तहीनता तथा ल्यूकोडर्मा की उत्तम औषधि है.
२ . - मंदाग्नि से बचने के लिए जामुन को काला नमक तथा भूने हुए जीरे के चूर्ण के साथ खाना चाहिए.
३. - जामुन यकृत को शक्ति प्रदान करता है और मूत्राशय में आई असामान्यता को सामान्य बनाने में सहायक होता है। जामुन का लगातार सेवन करने से यकृत (लीवर) की क्रिया में काफी सुधार होता है।
Wednesday, April 25, 2018
केला खाए ताकतवर हो जाये
केला हर मौसम में सरलता से उपलब्ध होने वाला अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। केला रोचक, मधुर, शक्तिशाली, वीर्य व मांस बढ़ाने वाला, नेत्रदोष में हितकारी है। पके केले के नियमित सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह कफ, रक्तपित, वात और प्रदर के उपद्रवों को नष्ट करता है।
केले के पेड़ को यदि हम देखे तो केले का हर हिस्सा काम का होता है,चाहे पत्ता हो,तना हो, फल (कच्चा पका दोनों)हो,जड़ हो फूल हो, सभी बड़े महत्वपूर्ण है. यहाँ तक कि जब केले पर कालिमा आ जाए तो हम उसे सडा जानकार फेक देते है, उस समय केला और पौष्टिक हो जाता है.केला कभी सड़ता नहीं है.
केले में मुख्यतः विटामिन-ए, विटामिन-सी,थायमिन, राइबो-फ्लेविन, नियासिन तथा अन्य खनिज तत्व होते है. इसमें जल का अंश 64.3 प्रतिशत ,प्रोटीन 1.3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 24.7 प्रतिशत तथा चिकनाई 8.3 प्रतिशत है.
शक्तिवर्धक :- एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच घी, पिसी हुई इलाइची व शहद मिला कर केले खाने के साथ पीने से शरीर सुन्दर और बलशाली होता है, बल, वीर्य, शुक्राणु ,काम-शक्ति और मष्तिस्क शक्त बढ़ती है . दही में केला और पीसी हुई मिश्री मिलकर खाने से भी मोटापा बढ़ता है.
बलवृद्धि के लिए व्यायाम तथा खेलकूद के बाद केले खाना चाहिए. केले में कार्बोहाईड्रेट पर्याप्त मात्र में होता है जो सरलता से पाच जाता है , छोटे बच्चे को आसानी से दिया जा सकता है. यह बच्चों के लिए उतम आहार है. इसे मसलकर दूध में मिलकर खिलने से अधिक फायदा होता है. यह खून में वृद्धि करके शरीर की ताकत बढाता है. नित्य केला का सेवन अगर दूध के साथ किया जाय तो कुछ ही दिनों में स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव देखा जा सकता है.
केले को पकाने के लिए इथियन एवं कैल्सियम कार्बाइड रसायन का पानी के घोल में डुबाया जाता है इससे केले पक जाते है. ये रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इनसे केले के पौष्टिक तत्व भी नष्ट हो जाते है, इसलिए प्राकृतिक तरीके या वर्फ से पकाया ही खाना चाहिए. चितलीदार केला रसायनों से पकाया जाता है. अतः इसे नहीं खाना चाहिए. बिना धुले केला या अन्य कोई भी फल हानिकारक हो सकता है.
कच्चे केले की सब्जी बहुत ताकतवर और पौष्टिक होती है मगर कच्चा केला आप ऐसे ही कभी न खाएं उसे सब्जी के रूप में ही खाएं.केले को अगर दूध में मिक्स करके खाया जाये तो यह पूरे भोजन की ताकत दे देता है. फिर आप दिन भर भोजन न भी करें तो कमजोरी महसूस नहीं होगी. केला छोटे बच्चों के लिए उत्तम व पौष्टिक आहार है। इसे मसलकर या दूध में फेंटकर खिलाने से लाभ मिलता है।
केले में उपस्थित तत्व - इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नेशियम, मैगनीज, कापर, आयरन, फास्पोरस,सल्फर, आयोडीन, अलुमिनियम, जिंक, कोबाल्ट, सिट्रिक एसिड, मैलिक एसिड ,आक्जेलिक एसिड तथा केले के फूल में डोपामाइन, कैफिक एसिड, गेलिक एसिड, प्रोतोकेतेच्विक एसिड, कम्पेस्तेराल, फेरुलिक एसिड, स्तीग्मास्तीराल, डोपानोराद्रेनालिन , सेलेनाल ग्लायकोसाइड्स ,सिनामिक एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं.
पेचिश रोग में - पेचिश रोग में थोड़े-से दही में केला मिलाकर सेवन से फायदा होता है।पेट में जलन होने पर दही में चीनी और पका केला मिलाकर खाएं । इससे पेट संबंधी अन्य रोग भी दूर होते हैं।अल्सर के रोगियों के लिए कच्चे केले का सेवन रामबाण औषधि है।
खाँसी में - एक पके केले में आठ साबुत काली मिर्च भर दें, वापस छिलका लगाकर खुले स्थान पर रख दें। शौच जाने के पूर्व प्रातः काली मिर्च निकालकर खा जाएँ , फिर ऊपर से केला भी खा जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने से हर तरह की खाँसी ठीक हो जाती है।अगर किसी को काली खांसी हो गयी है तो केले के तने को सुखाकर फिर जला कर जो राख बचती है वह दो-तीन चुटकी लीजिये और शहद मिला कर चटा दीजिये . काली खांसी जड़ से ख़त्म हो जाएगी.
जलने पर - आग से बदन का कोई हिस्सा जल गया हो तो वहाँ केले को मसल कर रख दीजिये और ऊपर से कपडे से बाँध दीजिये.जलन भी कम होगी और घाव भी ठीक होगा.
पथरी में - केले के तने की भस्म को पानी में घोल कर पीने से मूत्राशय की पथरी गल के निकल जाती है .केले का रस पीने से खुल कर पेशाब आता है और मूत्राशय (यूरीन ब्लैडर) साफ़ हो जाता है.जिससे देह में संचित रोग के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं. परिणामतः रोग भी नष्ट हो जाते हैं.केला अगर एक निश्चित मात्रा में रोज खाया जाए तो ये किडनी को मजबूत बनाता है.
बहुत ज्यादा यूरीन हो रहा हो तो भी आप एक या दो कच्चा केला खा सकते हैं.
शारीरिक कमजोरी में - जिनकी पाचन शक्ति कमजोर हो, तो केले को सुखाकर पीसकर केले का आटा बनाकर, केले के आटे की रोटी खानी से कमजोर पाचन शक्ति ठीक हो जाती है. केला सुखाकर पीसकर उसका पावडर बना कर रख लीजिये. इस पावडर को छोटे बच्चों को ५ ग्राम की मात्र में रोज खिला दीजिये.६ महीने तक खिलाने से कमजोर बच्चा पहलवान जैसा मजबूत हो जाएगा. चहरे पर चमक भी आ जाएगी.
कोलेस्ट्रॉल - केले में मैग्नीशियम की काफी मात्रा होती है जिससे शरीर की धमनियों में खून पतला रहने के कारण खून का बहाव सही रहता है। इसके अलावा पूर्ण मात्रा में मैग्नीशियम लेने से कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है।
संग्रहणी - किसी को संग्रहणी की शिकायत हो तो वह पके केले के साथ इमली और नमक खाए , यह मिश्रण संग्रहणी दूर कर देता है.हैजे से ग्रसित रोगी को सुबह शाम एक एक पका केला जरूर खिला देना चाहिए
सांस से सम्बंधित बीमारी
में - सांस से सम्बंधित कोई बीमारी हो तो एक केला लीजिये ,उसमे बीच में
चीरा लगाकर काली मिर्च का ३-४ ग्राम पावडर भर के रात भर रख दीजिये, सवेरे
इस केले को तवे पर ज़रा सा देशी घी डाल कर सेंक लीजिये.फिर खा लीजिये. ३
दिन लगातार यही काम करे. सांस की बीमारी ख़त्म.
बबासीर में - एक केले को बीच से चीरा लगाकर चना बराबर कपूर बीच में रख दे फिर इसे खाए इससे बबासीर एकदम ठीक हो जाती है.
माहवारी में - अगर महिलाओं को माहवारी के समय बहुत ज्यादा रक्तस्राव होता हो तो केले के फूलों का रस निकाल कर उसे दही मिला कर पी लें. इस दवा से पतले दस्त में भी बहुत फायदा होता है.
ब्लड सुगर- केले के फूलों का सत मिल जाए तो इसे ब्लड सुगर को कंट्रोल करने के लिए रोजाना एक चुटकी खा लीजिये. बहुत अचूक दवा है.
कोलेस्ट्राल और कैंसर के लिए
अदरक का प्रयोग हमारे कोलेस्ट्रोल को भी कंट्रोल करता है, इससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है और इसके इस्तेमाल से खून में क्लाट भी नहीं बनते हैं । इसमें एंटी फंगल और कैंसर प्रतिरोधी होने के गुण भी पाए जाते हैं।
प्रेग्नेंसी में जरूरी है फोलिक एसिड
खान-पान और अन्य चीजों को लेकर प्रेग्नेंसी में विशेष सावधानी बरतनी आवश्यक हो जाती है। यदि ऐसा न किया जाए तो प्रेग्नेंसी में प्रॉब्लम हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान प्रेग्नेंट महिला के हार्मोंस में काफी परिवर्तन आ जाता है। ऐसे में विटामिन, कैल्शियम, कैलोरी इत्यादि की जरूरत भी अधिक होती है।
प्रेग्नेंसी के दौरान फोलिक एसिड का नियमित रूप से सेवन करना आवश्यक है। फोलिड एसिड की कमी गर्भवती मां और होने वाले बच्चें के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। आइए जानें क्यों प्रेग्नेंसी में जरूरी है फोलिड एसिड।
प्रेग्नेंसी में फोलिक एसिड
गर्भवती महिला को खाने में विटामिन, मिनरल और अन्य पोषक तत्वों के साथ ही फोलिक और आयरन लेना सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है।
वैसे तो आमतौर पर भी इन विटामिंस की जरूरत होती है, लेकिन गर्भावस्था में
फोलिक एसिड और आयरन की आवश्यकता सामान्य से 50फीसदी तक बढ़ जाती है।
गर्भावस्था के दौरान फोलिक एसिड का नियमित सेवन न करने से गर्भवती महिला को
एनीमिया हो सकता है। इतना ही नहीं यह बीमारी होने वाले बच्चे को भी हो
सकती है।
शुरूआती दिनों में फोलिक एसिड का अधिक सेवन करने से
गर्भावस्था के आने वाले दो-तीन महीनों में इसकी आपूर्ति होती है। ऐसे में
शुरूआती समय में ही फोलिक एसिड और आयरन भरपूर मात्रा में लेना चाहिए।
फोलिक एसिड की पूर्ति के लिए गर्भवती महिला को हरी पत्तेदार सब्जियां,
स्ट्राबेरी, फलियों, संतरे, मोसमी और सलाद का सेवन करना चाहिए। हालांकि
इसके फोलिक एसिड की पिल्स भी आती हैं लेकिन पिल्स से अन्य बीमारियां जैसे
कब्ज इत्यादि होने की संभावना रहती है।
गर्भावस्था में फोलिक एसिड की
कमी जैसी समस्या आम होती है। इसकी वजह से बच्चे की रीढ़ की हड्डी में विकार
उत्पन्न हो सकते हैं। साथ ही मस्तिष्क के सामान्य विकास पर भी असर पड़
सकता है, इसलिए गर्भावस्था में यह सबसे ज्यादा जरूरी है।
गर्भावस्था
शुरूआत में भले ही फोलिक एसिड की मात्रा कम लें, लेकिन धीरे-धीरे इसकी
मात्रा बढ़ा देनी चाहिए जिससे फोलिड एसिड की कमी से कोई विकार उत्पन्न ना
हो।
गर्भावस्था में फोलिक एसिड के नियमित सेवन से गर्भस्थ शिशु में
होने वाले जन्मजात विकार जैसे स्पाईनल बायफिडा की समस्या कम हो जाती है।
गर्भावस्था में फोलिक एसिड और अन्य विटामिन, मिनरल्स इत्यादि की कमी होने से न सिर्फ मां बल्कि होने वाले बच्चें को भी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती है। इसके अलावा मां और बच्चे की जान का भी जोखिम बना रहता है।
गर्भावस्था के दौरान सावधानियां
कुछ स्त्रियां माहवारी के न आने पर दवाइयों का सेवन करना शुरू कर देती है। इस प्रकार की दवा का सेवन महिलाओं के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जैसे ही यह मालूम चले कि आपने
गर्भाधारण कर लिया है तो अपने रहन-सहन और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर
देना चाहिए। गर्भधारण करने के बाद महिलाओं को किसी भी प्रकार की दवा के
सेवन से पूर्ण डाक्टरों की राय लेना अनिवार्य होता है। ताकि आप कोई ऐसी
दवा का सेवन न करें जो आपके और होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है।
यदि महिलाओं को शूगर का हो तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करनी
चाहिए। यदि मिर्गी , सांस की शिकायत या फिर टीबी का रोग हो तो भी इसके लिए
भी डाक्टर की सलाह ले लेनी
चाहिए। यहीं नहीं, यह भी सत्य है कि आपके
विचार और आपके कार्य भी गर्भाधारण के समय ठीक और अच्छे होने चाहिए ताकि
होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े। जैसे ही पुष्टि हो जाती है कि आप
गर्भवती हैं उसके बाद से प्रसव होने तक आप किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ की
निगरानी मे रहें तथा नियमित रुप से अपनी चिकित्सीय जाँच कराती रहें।
गर्भधारण के समय आपको अपने रक्त वर्ग (ब्ल्ड ग्रुप), विशेषकर आर. एच.
फ़ैक्टर की जांच करनी चाहिए। इस के अलावा रूधिरवर्णिका (हीमोग्लोबिन) की भी
जांच करनी चाहिए। यदि आप मधुमेह , उच्च रक्तचाप , थाइराइड आदि किसी, रोग
से पीड़ित हैं तो, गर्भावस्था के दौरान नियमित रुप से दवाईयां लेकर इन
रोगों को नियंत्रण में रखें। गर्भावस्था के प्रारंभिक कुछ दिनों तक जी
घबराना, उल्टियां होना या थोड़ा रक्त चाप बढ़ जाना स्वाभाविक है लेकिन यह
समस्याएं उग्र रुप धारण करें तो चिकित्सक से सम्पर्क करें। गर्भावस्था के
दौरान पेट मे तीव्र दर्द और योनि से रक्त स्राव होने लगे तो इसे गंभीरता से
लें तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं। गर्भावस्था मे कोई भी दवा- गोली बिना
चिकित्सीय परामर्श के न लें और न ही पेट मे मालिश कराएं। बीमारी कितना भी
साधारण क्यों न हो, चिकित्सक की सलाह के बगैर कोई औषधि न लें। यदि किसी नए
चिकित्सक के पास जाएं तो उसे इस बात से अवगत कराएं कि आप गर्भवती हैं
क्योकि कुछ दवाएं गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव छोडती है। चिकित्सक की सलाह
पर गर्भावस्था के आवश्यक टीके लगवाएं व लोहतत्व (आयर्न) की गोलियों का सेवन
करें। गर्भावस्था मे मलेरिया को गंभीरता से लें, तथा चिकित्सक को तत्काल
बताएं। गंभीरता से चेहरे या हाथ-पैर मे असामान्य सूजन, तीव्र सिर दर्द,
आखों मे धुंधला दिखना और मूत्र त्याग मे कठिनाई की अनदेखी न करें, ये खतरे
के लक्षण हो सकते हैं। गर्भ की अवधि के अनुसार गर्भस्थ शिशु की हलचल जारी
रहनी चाहिए। यदि बहुत कम हो या नही हो तो सतर्क हो जाएं तथा चिकित्सक से
संपर्क करें। आप एक स्वस्थ शिशु को जन्म दें, इस के लिए आवश्यक है कि
गर्भधारण और प्रसव के बीच आप के वजन मे कम से कम 10 कि.ग्रा. की वृद्धि
अवश्य हो। गर्भावस्था में अत्यंत तंग कपडे न पहनें और न ही अत्याधिक ढीले।
इस अवस्था में ऊची एड़ी के सैंडल न पहने। जरा सी असावधानी से आप गिर सकती
है इस नाजुक दौर मे भारी श्रम वाला कार्य नही करने चाहिए, न ही अधिक वजन
उठाना चाहिए। सामान्य घरेलू कार्य करने मे कोई हर्ज नही है। इस अवधि मे बस
के बजाए ट्रेन या कार के सफ़र को प्राथमिकता दें। आठवें और नौवे महीने के
दौरान सफ़र न ही करें तो अच्छा है। गर्भावस्था मे सुबह-शाम थोड़ा पैदल
टहलें। चौबीस घंटे मे आठ घंटे की नींद अवश्य लें। प्रसव घर पर कराने के
बजाए अस्पताल , प्रसूति गृह या नर्सिगं होम में किसी कुशल स्त्री रोग
विशेषज्ञ से कराना सुरक्षित रहता है।
गर्भावस्था मे सदैव प्रसन्न रहें। अपने शयनकक्ष मे अच्छी तस्वीर लगाए। हिंसा प्रधान या डरावनी फ़िल्में
या धारावाहिक न देखें।
[ तथ्य वांछित ]
गर्भावस्था सुझाव सामान्य गर्भावस्था में भी किन- किन रोगों का परीक्षण
नियमित रूप से किया जाता है? लगभग सभी सामान्य गर्भों के दौरान एड्स,
हैपेटिटिस – बी, साईफिलिस, आर एच अनुपयुक्तता और रूबेला का नियमित परीक्षण
किया जाता है। गर्भकाल में अलग-अलग समय पर रक्त के सैम्पल लेकर डॉक्टर इन
स्थितियों का परीक्षण करते हैं। जन्मजात रोगों के सम्बन्ध में व्यक्ति को
कब चिन्ता करनी चाहिए? आपके बच्चे को जन्मजात रोगों का खतरा अधिक हो सकता
है यदि वह निम्नलिखित तीन कारणों में से किसी में आता है।
(1) पहले बच्चे में जन्मजात रोग (2) परिवार में जन्मजात विकारों का इतिहास जिनके दोहराये जाने
की सम्भावना रहती है। (3) यदि मां की उम्र 35 वर्ष से अधिक हो तो बच्चे में अभावपरक संलक्षणों का खतरा बढ़ जाता है।
क्या सामान्य रक्त परीक्षणों से जन्मजात विकारों को परखा जा सकता है ?
अध्ययन से पता चलता है कि प्रसव पूर्व होने वाली रक्त की जांचों से 90 प्रतिशत जन्मजात विकारों का पता नहीं चल पता है। जाने जा सकने योग्य 10 प्रतिशत जन्मजात रोगों के लिए अलग से चार प्रकार के टैस्ट हैं – एमनियोसेन्टीसिस, करौलिक विलि सैम्पलिंग, अल्फा फैटो प्रोटीन (ए एफ पी) जैसे टैस्ट और अल्ड्रासाउण्ड स्कैनस।
स्वास्थ्य परक आहार पर इतना अधिक जोर क्यों दिया जाता है?
अपने अजन्में बच्चें के पोषण की आप एकमात्र स्रोत हैं, आपके खाने की
प्रवृत्ति का बच्चे के स्वास्थ्य और कुशल क्षेम पर प्रभाव पड़ता है। बड़ी
हुई जरूरत को पूरा करने के लिए आप के शरीर को पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है।
गर्भवती माँ को कितनी कैलोरी की जरूरत होती है?
गर्भवस्था के प्रारम्भिक महीनों में आप को अपने आहार में बदलाव लाने
की जरूरत नहीं है। गर्भ के बढ़ने के साथ साथ आप को कैलोरी की मात्रा में
लगभग 300 अतिरिक्त कैलोरिस जोड़ लेने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसा सामान्यतः
दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर
में होता है। यहि आप अधिक खाते हैं तो आप का
ही वज़न बढ़ेगा न कि आपके बच्चे का। इसलिए ध्यान रखें कि आप बरगर, तले
पदार्थ, बिस्कुट जैसे केवल कैलोरी बढ़ाने वाले पदार्थ न लें। वस्तुतः आप को
जरूरत होती है – प्रोटीन कार्बोहाइड्रेटस एवं मिनरल तथा विटामिन युक्त
भोजन की जैसे कि चपाती, दालें, सोया, दूध अण्डे और सामिष भोजन, मेवे, हरे
पत्तों वाली सब्जियां और ताजे फल।
लोग कहते हैं कि गर्भवती महिला दो जनों के लिए खाती है?
गर्भ के कारण आप को दो के बराबर खाने की जरूरत नहीं है। सच यह है कि अगर आप दो के बराबर खायेंगे तो आप का वज़न इतना बढ़ जायेगा कि आप अपने लिए अनावश्यक रूप से परेशानियां बढ़ा लेंगी और बाद में उसे घटाने में बहुत परेशानी होगी।
गर्भवती महिला के लिए सन्तुलित भोजन कौन सा होता है?
गर्भकाल के दौरान आप के आहार में निम्नलिखित होने चाहिए -
१ बार श्रेष्ठतम प्रोटीन – अण्डा, सोयाबीन, सामिष।
2 बार विटामिल सी युक्त पदार्थ – रसीले फल, टमाटर4 बार कैलशियम
प्रधान पदार्थ (गर्भकाल में 4 बार स्तनपान में 5 बार) जैसे दूध, दही। [1] 3
बार हरी पत्तों वाली और पीली सब्जियां या फल पालक, बथुआ, छोले, सीताफल,
पपीता, गाजर। 1/2 बार अन्य फल एवं सब्जियां – बैंगन, बन्द गोभी4-5 बार
साबुत अनाज और मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस – चपाती चावल8-10 गिलास पानीडॉक्टर
के परामर्श के अनुसार आहार परक दवाएं।
एक गर्भवती महिला को किन आहार पूरक दवाओं की जरूरत होती है?
एक गर्भवती महिला को अपने आहार में विटामिन, आयरन और कैलशियम की जरूरत
रहती है। आयरन फोलिक और कैलशियम की गोलियां सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों
में मुफ्त उपलब्ध रहती हैं। ये दवाएं आमतौर पर सुविधा से उपलब्ध होती हैं
कौन सी दवा लेनी है इसका सुझाव डॉक्टर से
लेना चाहिए।
स्वस्थ गर्भ में कितने वज़न का बढ़ना आदर्श माना जाता है?
महिला का वज़न औसतन 11 से 14 किलो के बीच बढ़ना चाहिए।
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न के बढ़ने का श्रेष्ठतम स्वरूप क्या है?
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न बढ़ने का आदर्श स्वरूप इस प्रकार है।
1. पहला ट्रिमस्टर – 1 से 2 किलो , 2. दूसरा ट्रिमस्टर 5 से 7 किलो,3. चार से पांच किलो।
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय का पीना क्या सुरक्षित है?
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय पदार्थों का पान बहुत सीमित होना चाहिए। कम पोषक
तत्व वाले खाद्य पदार्थों की तीव्र इच्छा को कैसे वश में करें। या किसी अस्वास्थ्यकारी वस्तु के लिए तीव्र
इच्छा जागृत हो तो पहले अपने मन को उधर से हटायें या उसका विकल्प ढूंढ
लें। अगर फिर भी मन न माने तो जो भी लें थोड़ सा लें, अपने मन को समझा लें
कि अपने बच्चे की पोषक परक जरूरतों से आपने कोई समझौता नहीं करना है।
यदि किसी विशिष्ट अखाद्य पदार्थ को खाने की अनोखी इच्छा जगे तो कोई क्या करें?
डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उस में कोई पोषण परक विकार पैदा हो रहा है।
गर्भ के दौरान कब्ज से कैसे छुटकारा मिल सकता है?
कुछ गर्भवती महिलाओं का अर्धाश इस कब्ज से पीड़ित रहता है। कुछ सामान्य उपचार के साधन हैं।
(1) 1-2 गिलास जूस सहित कम से कम 8 गिलास पानी पियें।. (2) अपने भोज में अनाज, कच्चे फल और
सब्जियों की मात्रा अधिक करें उन में फाइवर अधिक हो .(3) हर रोज़ व्यायाम
करें – सैर करना व्यायाम की अच्छी शैली है। व्यायाम एवं अच्छी शारीरिक
स्थिति व्यक्ति को उसका पेट साफ
रखने में मदद देती है।. (4) अगर कब्ज बार बार होने लगे तो डॉक्टर की सलाह से कोई कब्ज निवारक दवा दें।
गर्भ के दौरान मसूड़ों का सूजना या उनसे रक्त आना स्वाभाविक क्रिया है?
गर्भ के दौरान शरीर में जो अतिरिक्त हॉरमोन आ जाते हैं उन से मसूड़े सूज सकते हैं या उन से रक्त आ सकता है। नरम टुथब्रश लेकर नियमित रूप से ब्रश करते रहें। गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति में दांतों का चैक अप करवा लेना चाहिए ताकि मुख को स्वास्थ्य सही रहे।
छाती में जलन से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
छाती की जलन से बचने के लिए
1) बार-बार परन्तु थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में 2-3 बार खाने की अपेक्षा
5-6 बार खायें। भोजन के साथ अधिक मात्रा में तरल पदार्थ न लें।
2) वायु-विकार पैदा करने वाले, मसालेदार या चिकने भोजन से बचें।
3) सोने से पहले कुछ खायें या पियें नहीं
4) खाने के दो घन्टे बाद ही व्यायाम करें।
5) शराब या सिगरेट न दियें।
6) बहुत गर्म या बहुत ठन्डे तरल पदार्थ न लें।
गर्भकाल के दौरान यौन-सम्भोग करते रहना क्या सुरक्षित होता है?
कुछ दम्पतियों को गर्भकाल में सम्भोग करने से चिन्ता होती है। उन्हें गर्भपात का भय लगा रहता है। स्वस्थ महिला के सामान्य गर्भ की स्थिति में गर्भ के अन्तिम सप्ताहों तक सम्भोग सुरक्षित होता है। आप और आप का साथी आरामदायक स्थिति में सम्भोग कर सकते हैं।
गर्भकाल में टांगों में पड़ने वाले क्रैम्पस क्या सामान्य हैं?
हां, गर्भ के दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर में हो सकता है कि आप की टांगों में
कैम्पस बढ़ जाये। अधिक मात्रा में कैलशियम लें। (तीन गिलास दुध या दवा) और
पोटैशियम (केला संतरा) लें। सोने से पहले टांगों का खिंचाव देकर सीधा करने
से शायद आपको कुछ राहत मिले।
क्या गर्भ के दौरान यात्रा करनी चाहिए?
अधिकतर औरतें सुरक्षित रूप से यात्रा कर लेती है। जब तक कि प्रसव काल
नज़दीक नहीं आ जाता। गर्भावस्था के मध्यकाल को सब से सुरक्षित माना जाता
है। इस दौरान कम से कम
समस्याएं होती है।
गर्भकाल के दौरान व्ययाम क्यों करना चाहिए?
निम्नलिखित कारणों से व्यायाम करना चाहिए
(1) आकृति और अभिव्यक्ति में सुधार लाने के लिए
(2) पीठ दर्द से छुटकारे के लिए
(3) प्रसव काल के लिए मांसपेशियों को सशक्त बनाने और ढीले पड़े जोड़ो को सहारा देने के लिए
(4) मांसपेशियों के कैम्पस से राहत के लिए
(5) रक्त संचार को बढ़ाने के लिए
(6) लचीलेपन को बढ़ाने के लिए
(7) थकावट दूर करने के लिए ऊर्जा वृद्धि के लिए
(8) भले चंगे होने की भावना भरने और आत्मछवि के सकारात्मक विकास के लिए।
आपका डॉक्टर आप को सही ढंग से व्ययाम के सम्बन्ध में बतायेगा।
क्या व्यायाम से मेरे बच्चे को लाभ पहुंचेगा?
हां भ्रूण के लिए व्यायाम अति उत्तम है क्योंकि इस से रक्त प्रवाह बढ़ता है और बच्चे की वृद्धि और विकास को सुधारता है। व्यायाम से बच्चे का मस्तिष्क और अन्य टिशु श्रेष्ठ स्थिति में काम करने लगते हैं।
गर्भकाल के दौरान कौन सा व्यायाम सुरक्षित माना जाता है?
किसी प्रकार के खेल-कूद या व्ययाम को जारी रखने में कोई समस्या नहीं है, जब तक कि वह सीमा में हो। फिर बी पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
किस प्रकार का व्यायाम बिल्कुल नहीं करना चाहिए?
जॉगिंग जैसा व्यायाम रीढ, श्रोणि, नितम्बों, घुटनों स्तनों और पीठ पर बड़ा
भारी पड़ता है। इसलिए उसे नहीं करना चाहिए। जिस व्यायाम से पेट की
मांसपेशियां खिंचे जैसे टांगे उठाना, उठक बैठक भी गर्भ के दौरान नहीं करने
चाहिए। और गर्भवती नवीन चेष्टाओं से तालमेल बैठाने में शरीर को कुछ समय
लगता है। चौथे महीने के बाद, पीठ के बल लेटकर व्यायाम न करें, क्योंकि आपके
गर्भाशय का वज़न रक्त वाहिकाओं को दबा सकता है और रक्त भ्रमण में बाधा दे
सकता है।
गर्भधारण करने के कितने समय बाद तक मैं काम करती रह सकती हूँ?
जिस गर्भवती महिला को कोई समस्या न हो वह नौवें महीने तक काम करती रह सकती है। हाँ, उन्हें कुछ सावधानियां बरतनी पडेंगी जैसे कि भारी थकान वाली गतिविधि से बचें, सीढ़ियां चढ़ने, तापमान की अति और धुये भरे क्षेत्र से दूर रहें। बार- बार आराम करें और यदि थकान लगे तो जल्दी ही काम से लौट जायें यदि बहुत देर तक खड़ी रही हैं तो बैठ जायें और पैर ऊपर कर लें। अन्तिम तीन महीनों में लम्बे समय तक खड़े रहना, भारी चीज़ों को उठाना, मुड़ना या झुकना नहीं चाहिए। गर्भवती महिला को नियमित भोजन करना चाहिए एक जगह बैठकर किया जाने वाला काम जिस से ज्यादा परेशानी न हो वह घर बैठने की अपेक्षा कम दबाव वाला होता है।
गर्भकाल में निम्नलिखित तकनीकें सहायक होती हैं!
1. पीठ के बल लेटो सिर तकिये पर हो और टांगों का निचना भाग कुर्सी पर हो।
आंखें बन्द कर के 10-15 मिनट तक आराम करें। पैरों और टखनों की सूजन से भी
इस में राहत मिलती है।
2. बगल से लेटो और सिर के नीचे तकिया रख लो,
भुजा के ऊपरी भाग को और टांगों को ऊपर की ओर खीचों, घुटने के नीचे तकिया रख
लो। टांग के निचले भाग को सीधा रखो। आंखे बन्द करो और मस्तिष्क को साफ
करो। श्वास अन्दर भरो और दस तक गिनो। धीरे धीरे श्वास बाहर निकालो। पूरी
तरह विश्राम करो।
गर्भवती महिला को बाई ओर सोना चाहिए, ऐसा सुझाव डॉक्टर क्यों देते हैं?
हालांकि पीठ के बल सोना शुरू में अधिक आरामदायक हो सकता है। इस से पीठ में दर्द और हॉरमोरोहोऑटाडस हो सकता है और पाचन, श्वसन और रक्त भ्रमण में रूकावट आती है ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भाशय का सारा वज़न पीठ पर आ जाता है। जबकि बाई ओर के अंगों को सीधा करने से रक्त स्राव भरपूर होता है और बीजाण्ड का पोषण होता है, किडनी का कार्य सुचारू रूप से होता है जिस से मल का त्याग बेहतर रूप से होता है (जिसके न होने से सूजन आता है) अतः इसे अत्यन्त आरामदायक स्थिति माना जाना चाहिए। गर्भधारण के बारे में जाने सबकुछ किसी महिला की पूर्णता सामान्यतौर पर तभी मानी जाती है जब वह मां बनने का सुख प्राप्त करती है। इसके लिये उसे गर्भधारण से प्रसव तक की परिस्थितियों से जूझना पड़ता है।
गर्भ परीक्षण क्या होता है और वह कैसे होता है?
गर्भ परीक्षण में रक्त अथवा मूत्र में उस विशिष्ट हॉरमोन को परखा जाता है
जो गर्भवती होने पर ही महिला में रहता है। ह्यूमक कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन
(एच सी जी) नामक हॉरमोन को गर्भ हॉरमोन भी कतहे हैं जब उर्वरित अण्डा
गर्भाषय से जुड़ जाता है तो आपके शरीर में एच सी जी नामक गर्भ
हॉरमोन बनता है। सामान्यतः गर्भधारण के छह दिन बाद ऐसा होता है।
गृह गर्भ परीक्षण (एच पी टी) क्या होता है?
यह गृह गर्भ परीक्षण अपना परीक्षण स्वयं करो की शैली का परीक्षण है जो कि अपने घर पर
सुगमता पूर्वक किया जा सकता है। यह सर्वसुलभ है, परीक्षण है जो कि अपने घर
पर सुगमता पूर्वक किया जा सकता है। यह सर्वसुलभ है, इसकी कीमत 40-50 रुपये
होती है। महिला को एक साफ शीषी में अपना 5 मिली मूत्र लेना होता है और
परीक्षण के लिए किट में दिए गए विशिष्ट पात्र में दो बूंद मूत्र डालना होता
है। उसके बाद कुछ मिनट तक इन्तजार करना होता है। अलग अलग ब्रान्ड के किट
इन्तजार का समय अलग अलग बताते हैं समय बीतने पर रिजल्ट विंडों पर ररिणाम को
देखें। यदि एक लाईन या जमा का चिन्ह देखे तो समझ लें कि आपने गर्भ धारण कर
लिया है। लाईन हल्की हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। हल्की हो या स्पष्ट
अर्थ सकारात्मक माना जाता है।
एक बार पीरियड न होने पर कितनी जल्दी एच पी टी से सही सही परिणाम प्राप्त कर सकते हैं?
बहुत से एच पी टी पीरियड के निश्चित तिथि तक न होने पर 99 प्रतिशत उसी दिन सही परिणाम बताने का दावा करते हैं।
एच पी टी से नकारात्मक परिणाम पाकर भी क्या गर्भ धारण की सम्भावना हो सकती है?
हां, इसलिए अधिकतर एच टी पी महिलाओं को कुछ दिन या सप्ताह बाद पुनः परीक्षण का सुझाव देते हैं।
गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति : पहला ट्रिमस्ट रगर्भधारण के प्रारम्भिक लक्षण क्या हैं?
सामान्यतः औरतें माहवारी के न होने को गर्भधारण की सम्भावना से जोड़ती हैं, परन्तु गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति में जो अन्य लक्षण एवं चिन्हों का अनुभव भी अधिकतर महिलाएं करती हैं इन में शामिल हैं (1) स्तनों में सूजन महसूस करना, ढीलापन या दर्द (2) घबराहट एवं उल्टी जिसे कि पारम्परिक रूप से प्रातःकालीन बीमारी से जोड़ा जाता है। (3) बार-बार मूत्र त्याग (4) थकावट (5) खाने की चीज़ से जी मितलाना या तीव्र चाहत (6) मूड में उतार चढ़ाव (7) निप्पल के आसपास का रंग गररा हो जाना (8) चेहरे के रंग का काला पड़ना।
एक बार माहवारी का न होना क्या हमेशा गर्भ धारण का पहला चिन्ह माना जा सकता है?
एक बार माहवारी का न होना सामान्यतः गर्भ धारण का चिन्ह होता है, हालांकि किसी किसी महिला को उस समय के आसपास कुछ रक्त स्राव हो सकता है या धब्बे लग सकते हैं। हाँ, जिस औरत की माहवारी नियमित नहीं रहती उस को यह पता लगने से पहले कि वास्तव में माहवारी नहीं हुई अन्य प्रारम्भिक लक्षणों से पता चल सकता है।
प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कैसे की जाती है?
आप की अन्तिम माहवारी के पहले दिन से लेकर सामान्यतः गर्भ 40 सप्ताह तक रहता है, यदि आप को अन्तिम माहवारी की तिथि याद हो और आपका चक्र नियमित हो तो आप घर बैठे प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कर सकते हैं। यदि आप का चक्र नियमित और 28 दिन लम्बा हो तो अन्तिम माहवारी के आधार पर (एल एम पी) आप पहले दिन में नौ महीने और 7 दिन जोड़कर प्रसव की सम्भावित तिथि का निर्धारण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप की अन्तिम माहवारी 5 सितम्बर को शुरू हुई थी तो प्रसव की सम्भावित तिथि अगले वर्ष 12 जून होगी।
गर्भ के प्रारम्भिक दिनों में क्या घबराहट और उल्टी केवब प्रातःकाल में ही होता है?
गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति से सम्बधित घबराहट और उल्टी दिन और रात में किसी भी समय हो सकती है।
गर्भ सम्बन्धिक घबराहट और उल्टी से कैसे निपटना चाहिए ?
मितली को रोकने एवं सहज करने के लिए कुछ निम्नलिखित टिप्स की आजमायें
(1) थोड़ी थोड़ी देर के बाद थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में तीन मुख्य भोज लेने की अपेक्षा 6-8 बार ले लें। (2)
मोटापा बढ़ाने वाले तले हुए और मिर्ची वाले पदार्थ न लें। (3) जब जी
मितलाये तब स्टार्च वाली चीजें खायें जैसे रस्क या टोस्ट। अपने बिस्तर के
पास ही कुछ ऐसी चीजें रख लें ताकि सुबह बिस्तर से उठने से पहले खा सकें।
अगर आधि रात को जी मितलाये तो उन चीजों को लें (4) बिस्तर से धीरे धीरे
उठें। (5) घबराहट
होने पर नीबू चूसने का प्रयास करें।
मित्तली के लिए क्या डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए?
यदि आप को लगे कि उल्टी बहुत ज्यादा हो रही है तो डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। अत्यधिक उल्टी से अन्दर का पानी खत्म हो सकता है, ऐसी स्थिति में अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है।
गर्भावस्था में बार-बार मूत्र त्याग की जरूरत क्यों पड़ती है?
गर्भ की प्रारंभिक स्थिति में बढ़ते हुए गर्भाशय से ब्लैडर दबता है – इसी से बार-बार मूत्रत्याग करना पड़ता है।
गर्भ की दूसरी स्थिति (ट्रिमस्टर) के क्या लक्षण एवं चिन्ह होते हैं?
दूसरी स्थिति में (1) मित्तली और थकावट कम हो जाती है। (2) पेट बढ़ जाता है (3) वज़न बढ़ता है (4) पीठ दर्द (5) पेट पर फैलाव के निशान (6) चेहरे का रंग बदलना।
गर्भ धारण की तीसरी स्थिती (ट्रिमस्टर) के क्या लक्षण एवं चिन्ह होते हैं?
तीसरी स्थिति में निम्नलिखित लक्षण एवं चिन्ह उभरते हैं
(1) बच्चे के बढ़ने से दबाव के कारण श्वास लेने में कठिनाई बढ़ जाती है। (2) जल्दी जल्दी मूत्र त्याग (3) छाती में जलन वाली दर्द (4) कब्ज (5) सूजे हुए ढीले स्तन (6) अनिद्रा (5) पेट में मरोड़। अपरिपक्व प्रसव किसे कहते हैं? 37 वें सप्ताह से पहले ही प्रसव की सम्भावना को अपरिपक्व प्रसव कहते हैं।
अपरिपक्व प्रसव के लक्षण क्या होते हैं?
अपरिपक्व प्रसव के लक्षणों में शामिल हैं - 1. पीठ के निचले भाग में दर्द और दबाव। 2. नितम्बों पर दबाव
3. योनि से पानी जैसा गुलाबी अथवा भूरा स्राव होता है। 4. माहवारी जैसे
क्रैम्पस, घबराहट, डॉयरिहा या बदहज़मी। 5. योनि के मैम्ब्रेन का फटना। पेट
में खिचाव क्यों पड़ते हैं?
पेट में खिचाव पीड़ा विहीन होते हैं और
दसवें हफ्ते में ही शुरू हो जाते हैं परन्तु पूरी तरह वे अन्तिम ट्रिमस्टर
में ही उभरते हैं जब ये खिचाव जल्दी और ज्यादा होने लगते हैं तो कभी कभी
उसे प्रसव की प्रारम्भावस्था मान लेने की भूल भी हो जाती है।
चेतावनी संकेत गर्भ को खतरे की सूचना देने वाले कौन कौन से लक्षण होते हैं?
निम्नलिखित संकेतों को गम्भीर स्थिति का सूचक माना जा सकता है।
(1) योनि से रक्तस्राव या धब्बे लगना (2) अचानक वज़न बढ़ना (3) लगातार सिर
में दर्द (4) दृष्टि का धूमिल होना (5) हाथ पैरों का अचानक सूजना (6) बहुत
समय तक उल्टियां (7) तेज बुखार और सर्दी लगना (गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति
में अचानक पेट में तेज दर्द (9) भ्रूण की गतिविधि को महसूस न करना।
योनि से रक्त स्राव अथवा धब्बे किस के सूचक हैं?
प्रारम्भिक महीनों में योनि से रक्त स्राव या धब्बे लगने के साथ-साथ पेट
में दर्द भी हो तो उसे सम्भावित गर्भपात की चेतावनी माना जा सकता है। बाद
के महीनों में यदि रक्त स्राव होता है तो उसे इस का संकेत माना जा सकता है
कि बीजाण्डासन (प्लैसैन्टा) बहुत नीचे है अथवा वह गर्भाशय की दीवारों से
अलग हो गया है।
अचानक वजन बढ़ना, लगातार सिर दर्द, धूमिल दृष्टि, हाथ पैरों में अचानक सूजन आना किस चीज़ के संकेत है?
ये लक्षण गर्भकाल में उच्च रक्त चाप के जिसे कि टौक्सीमिया भी कहा जाता
है, उसके सूचक हो सकते हैं। ऐसे लक्षण होने पर महिला को रक्त चाप सामान्य
करने के लिए अथवा भ्रूण परीक्षण के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत
पड़ सकती है। टौक्सीमिया से कई कठिनाइयां हो सकती है जैसे कि भ्रूण की
अपर्याप्त वृद्धि, अपरिपक्व प्रसव या प्रसव के दौरान भ्रूण पर
संकट।
गर्भकाल में तेज़ बुखार खतरनाक क्यों होता है?
ठंडी कंपकंपी के साथ तेज बुखार अथवा बिना सर्दी के तेज़ बुखार इन बात का संकेत हो सकता है कि भ्रूण के आसपास के मैमब्रेन्स में सूजन है जिसे कि एम्निओनिटिस भी कहते हैं। यह भ्रूण के लिए विशेषकर खतरनाक होता है और इस के परिणामस्वरूप अपरिपक्व प्रसव भी हो सकता है।
Sahara Ayurveda
whats-app and Helpline No. 9890007014
यदि आवाज बैठी हुई है
गले में खराश है, तो सुबह उठते समय और रात को सोते समय छोटी इलायची चबा-चबाकर खाएँ तथा गुनगुना पानी पीएँ।
गुलाब का फूल
गुलाब फूलों का राजा है यह फूल के साथ-साथ एक जड़ी बूटी भी है, इसमें शरीर के विकास के लिए जरूरी विटामिन, अम्ल और रसायन है। गुलाब की पंखुडियो से गुलाब का शर्बत, इत्र, गुलाबजल और गुलकन्द बनाया जाता है। आंखों की जलन और खुजली दूर करने के लिए गुलाबजल का प्रयोग किया जाता है। मुंह में छाले होने पर गुलाब के फूलों का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से छाले दूर होते हैं। गुलकन्द खाने से पका हुआ मुंह और शारीरिक कमजोरी दूर होती है।
महौषधि - सौंठ
अदरक व सौंठ हर मौसम में, हर घर के रसोई घर में प्रायः रहते ही हैं। इनका उपयोग घरेलू इलाज में किया जा सकता है। सौंठ दुनिया की सर्वश्रेष्ठवातनाशक औषधि है. 'जिंजर टिंक्चर' का प्रयोग एक प्रकार के मादक द्रव्य के नाते नहीं, वरन् उसकी वात नाशक क्षमता के कारण ही किया जाता है । यह शरीर संस्थान में समत्व स्थापित कर जीवनी शक्ति और रोग प्रतिरोधक सामर्थ्य को बढ़ाती है । हृदय श्वांस संस्थान से लेकर वात नाड़ी संस्थान तक यह समस्त अवयवों की विकृति को मिटाकर अव्यवस्था को दूर करती है । अरुचि, उल्टी की इच्छा होने पर, अग्नि मंदता, अजीर्ण एवं पुराने कब्ज में यह तुरंत लाभ पहुँचाती है । यह हृदयोत्तेजक है । जो ब्लड प्रेशर ठीक करती है तथा खाँसी, श्वांस रोग, हिचकी में भी आराम देती है । सौंठ में प्रोटिथीलिट इन्जाइम्स की प्रचुरता है । प्रोटिथीलिटिक एन्जाइम क्रिया के कारण ही यह कफ मिटाती है तथा पाचन संस्थान में शूल निवारण दीपन की भूमिका निभाती है । जीवाणुओं के ऊपर भी इसी क्रिया द्वारा तथा जीवनी शक्ति बढ़ाकर यह रक्त शोधन करती है ।
बहुधा सौंठ तैयार करने से पूर्व अदरख को छीलकर सुखा लिया जाता है । परंतु उस छीलन में सर्वाधिक उपयोगी तेल (इसेन्शयल ऑइल) होता है, छिली सौंठ इसी कारण औषधीय गुणवत्ता की दृष्टि से घटिया मानी जाती है । वेल्थ ऑफ इण्डिया ग्रंथ के विद्वान् लेखक गणों का अभिमत है कि अदरक को स्वाभाविक रूप में सुखाकर ही सौंठ की तरह प्रयुक्त करना चाहिए । तेज धूप में सुखाई गई अदरक उस सौंठ से अधिक गुणकारी है जो बंद स्थान में कृत्रिम गर्मी से सुखाकर तैयार की जाती है । कई बार सौंठ को रसायनों से सम्मिश्रित कर सुन्दर बनाने का प्रयास किया जाता है । यह सौंठ दीखने में तो सुन्दर दिखाई देती है, पर गुणों की दृष्टि से लाभकर सिद्ध नहीं होती है । सुखाए गए कंद को 1 वर्ष से अधिक प्रयुक्त नहीं किया जाना चाहिए । यदि इस बीच नमी आदि लग जाती है तो औषधि अपने गुण खो देती है । गर्म प्रकृति वाले लोगो के लिए सौंठ अनुकूल नहीं है.
सर्दियों में हर तीसरे दिन एक कप गर्म पानी में २ चुटकी पिसी सौंठ घोलकर पीने से मौसम का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता. बदलते मौसम की वजह से अगर खांसी, जुकाम या बुखार हो जाये तो दिन में 3-4 बार पिसी सौंठ को गुनगुने पानी में घोलकर पीने से किसी दवाई या अन्य इलाज की आवश्यकता नहीं रहती.
भोजन से पहले अदरक को चिप्स की तरह बारीक कतर लें। इन चिप्स पर पिसा काला नमक बुरक कर खूब चबा-चबाकर खा लें फिर भोजन करें। इससे अपच दूर होती है, पेट हलका रहता है और भूख खुलती है।
अदरक का एक छोटा टुकड़ा छीले बिना (छिलकेसहित) आग में गर्म करके छिलका उतार दें। इसे मुँह में रख कर आहिस्ता-आहिस्ता चबाते चूसते रहने से अन्दर जमा और रुका हुआ बलगम निकल जाता है और सर्दी-खाँसी ठीक हो जाती है।
सौंठ को पानी के साथ घिसकर इसके लेप में थोड़ा सा पुराना गुड़ और 5-6 बूँद घी मिलाकर थोड़ा गर्म कर लें। बच्चे को लगने वाले दस्त इससे ठीक हो जाते हैं। ज्यादा दस्त लग रहें हों तो इसमें जायफल घिसकर मिला लें।
अदरक का टुकड़ा छिलका हटाकर मुँह में रखकर चबाते-चूसते रहें तो लगातार चलने वाली हिचकी बन्द हो जाती है।
अपच की शिकायत है तो हरड़ के चूर्ण को सौंठ के चूर्ण के साथ लें। खाना खाने के पहले इस चूर्ण का सेवन करने से भूख खुल कर लगती है। इसे हरड, गुड़ या सेंधा नमक के साथ खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
बुढ़ापे में पाचन क्रिया कमजोर पड़ने लगती है. वात और कफ का प्रकोप बढ़ने लगता है. हाथो पैरो तथा शारीर के समस्त जोड़ो में दर्द रहने लगता है. सौंठ मिला हुआ दूध पीने से बुढ़ापे के रोगों से राहत मिलती है.
सौंठ श्वास रोग में उपकारी है। इसका काढा बनाकर पीना चाहिये।
गैस होने पर पिसी सौंठ में स्वादानुसार नमक मिलकर गुनगुने पानी के साथ लेने पर आराम मिलता है.
चिरौंजी
चिरौंजी को भला कौन नहीं जानता। यह हर घर में एक सूखे मेवे की तरह प्रयोग की जाती है। इसका प्रयोग भारतीय पकवानों, मिठाइयों और खीर व सेंवई इत्यादि में किया जाता है। चिरौंजी को चारोली के नाम से भी जाना जाता है। चारोली का वृक्ष अधिकतर सूखे पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। दक्षिण भारत, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, छोटा नागपुर आदि स्थानों पर यह वृक्ष विशेष रूप से पैदा होता है।
चिरौंजी स्वास्थ्य और सौंदर्य दोनों के लिहाज से बहुत अच्छी मानी जाती है। चिरौंजी का लेप लगाने से चेहरे के मुंहासे, फुंसी और अन्य चर्म रोग दूर होते हैं। चिरौंजी को खाने से ताकत मिलती है, पेट में गैस नहीं बनती एंव शिरःशूल को मिटाने वाली होती है। चिरौंजी का पका हुआ फल मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य तथा दस्तावार और वात पित्त, जलन, प्यास और ज्वर का शमन करने वाला होता है। चेहरा
खांसी में
खांसी में चिरौंजी का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से लाभ मिलता है। चिरौंजी पौष्टिक भी होती है, इसे पौष्टिकता के लिहाज से बादाम के स्थान पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
बालों को काला करे
चिरौंजी का तेल बालों को काला करने के लिए उपयोगी है।
खूनी दस्त रोके
5-10 ग्राम चारोली को पीसकर दूध के साथ लेने से खूनी दस्त में लाभ होता है।
चेहरे को सुंदर बनाने के लिये
चिरौंजी को गुलाब जल के साथ पीस कर चेहरे पर लेप लगाएं। फिर जब यह सूख जाए तब इसे मसल कर धो लें। इससे चेहरा चिकना, सुंदर और चमकदार बन जाएगा।
मुंहसों को दूर करे
संतरे के छिलके और चिरौंजी को दूध के साथ पीस कर चेहरे पर लेप लगाएं। जब लेप सूख जाए तब चेहरे को धो लें। एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें।
सेक्स में अरुचि ...... ?
आजमाएं ... जायफल Nutmeg !!!
* जायफल का 2 ग्राम चूर्ण + 2 ग्राम
मिश्री मिला रोजाना सुबह शाम
फ़ांकी मारने से शरीर पुष्ट बनता है !
* जिन पुरुषों के शरीर में शुक्राणुओं के
बनने का सिलसिला कम हो जाए
अथवा वीर्य पतला होने की शिकायत
हो - उन्हें फार्मूले को आजमाकर देखना
चाहिए !
* जायफल सेक्सुअल एक्टिविटी को
सकारात्मक तौर से बढ़ाता है !
Sahara Ayurvedic
9890007014
:: समय से पूर्व मासिक की रूकावट ::
* अजवाइन 10 ग्राम
* पुराना गुड 50 ग्राम
* 200 एमएल पानी में पका सुबहा शाम
सेवन करें !
इससे रूका मासिक तो शुरू होगा ही -
साथ गर्भाश्य की शुद्धि वी होगी !
अजवाइन चूर्ण 3 - 4 ग्राम सुबहा
शाम गाय के गुनगुने दूध के साथ सेवन करने
से रूका मासिक शुरू हो जाता है !
पसली के दर्द में :-
* चंद्रामृत रस 4 रत्ती + श्रृंग भस्म 1½रत्ती + नौसादर 1½ रत्ती + मल्लसिंदूर 1 रत्ती ले सबको एकसार कर मिला इसकी 4
बराबर - बराबर वजन की पुड़ियां बना लें !1 - 1 पुड़िया 4 - 4 घंटे पर दें !
यह पसली के दर्द ( पार्श्वशूल ) का सफल अनुभूत नुस्खा है !
निमोनिया की अवस्था में यह योगमिश्रण कफ को द्रव करके निकालता है !
इससे हृदय की वेदना कम हो जाती है !
पसली के दर्द में :-
* सिंगरफ 3 ग्राम + जायफल + लौंग +जावित्री सभी 6 - 6 ग्राम
मोम 12 ग्राम व देशी घी 60 ग्राम !
पहले सिंगरफ को खूब घोंटें फिर लौंग -जावित्री - जायफल को महीन पीस कर रख लें ! उसके बाद घी गर्म करके उसमें मोम मिला दें !
जब दोनों घुल जाएँ तब उतार उक्तपिसी हुई औषधियों को डाल खूब
मिला दें !
ठंडा होने पर यह वैसलीन के समान मलहम
बन जाता है !
बच्चों बड़ों को तीव्र पसली के दर्द में
हल्का गर्म करके लगाने से तुरंत दर्द बंद
हो जाता है.
यह शत - प्रतिशत सफल अनुभूत योग है !
:: बहु उद्देशीय नुस्का ::
* 50 ग्राम कलौंजी - पीस पाउडर बना लें
* 50 ग्राम इसबगोल का छिलका
* 100 ग्राम शहद
कलौंजी पाउडर- इसबगोल के छिलके व
शहद को मिला किसी कांच के जार में डाल लें !
सेवन विधि :-
1 छोटा चम्मच सुबह निहार मुंह व एक
एक चम्मच लंच व डिनर के बाद चाट लें !
हर मौसम में सेवन किया जा सकता है !
लाभ :-
जोडों के दर्द - कमर दर्द - फलु - नजला -
जुकाम - पेट व आंतों के कीडे खत्म करे !
मोटापे के कारण लटके पेट को सही करे
और वी बहुत सारे फायदे जो लिखे जाने मुमकिन नहीं !
विशेष :- कलौंजी लेनी है - काली जीरी नहीं !
आयुर्वेद का ज्ञान पहुँचाना हमारा लक्ष्य !
आयुर्वेद से सम्बंधी लोगों में आम जानकारी और जागरूकता बढाने के लिये हम यहाँ आयुर्वेदिक कि जानकारिया देते हैं. व्यक्तिगत चिकित्सा के लिये आयुर्वेदिक चिकित्सक/वैद्य से परामर्श आवश्यक है। यहाँ दी गई सलाह/राय उसका स्थान नहीं ले सकती . बिना रोगी को पूरी तरह देखे कोई भी सलाह पर चिकित्सा शुरू कर देना हानिकारक हो सकता है। और यह भी स्पष्ट कर दूं कि किसी भी सदस्य की सलाह उसकी व्यक्तिगत है. यह पेज या इसके संचालक ऐसी किसी भी सलाह के परिणामों के लिये उत्तरदायी नहीं होंगे | हमारे द्वारा की गई पोस्ट या बताई गई दवाओ का उपयोग अपने नजदीकी वैद्य से सलाह कर ही लेवे |
आयुर्वेद की दवाओ में परहेज आवश्यक होता है |
-::- आलू के औषधीय गुण -::-
आलू के औषधीय गुण का विवरण नीचे दिया जा रहा है
नेत्र रोग- कच्चे आलू को साफ पत्थर के टुकड़े पर घिसकर 2-3 माह तक नेत्रों
में काजल की भाति लगाने से 4-5 वर्ष पुरानी फुली या जाला नष्ट हो जाते है।
आग से जलना- जले हुए स्थान पर फफोला पड़ने से पूर्व ही कच्चा आलू पत्थर पर
बारीक पीसकर लेप कर देने से दाहकता शांत हो जायेगी फफोला नही पड़ेगा और
रोगी स्थान शीघ्र ठीक हो जयेगा।
स्कर्वी- दातों की हड्डिया सूज गई हो और मसूढ़ों से रक्त निकलता हो तो भुने
आलूओं का सेवन करे अथवा छिलके सहित आलू का पतला शाक या शूप बनाकर खाना
चाहिए।
बेरी बेरी- कच्चा आलू चबाकर उसका रस ग्रहण करने अथवा आलू कूट
पीसकर उसका रस निचोड़ कर एक एक चम्मच की मात्रा में पिलाते रहने से नाडि़या
की क्षीणता दूर होने लगती है। और पुनः शक्ति प्राप्त कर चलने योग्य हो
जाता है।
कमर का दर्द (कटिवेदना)- कच्चे आलू की पुल्टिस बनाकर कमर पर लगानी चाहिए।
विसर्प- त्वचा पर पड़ने वाली लाल लाल फुन्सियों को विसर्प कहते है। उन पर
तथा घुटने या अन्य संधि स्थलों की शोथ (सूजन) या चोट लगने से नसें नीली पड़
जाने पर कच्चे आलू पीसकर रोगी में आलू का सेवन हितकर रहता है।
निला पड़ना- चोट लगने पर नील पड़ जाने की स्थिति में जिस स्थान पर नील पड़ी है वहा कच्चा आलू पीसकर लगाना लाभप्रद है।
तेज धूप व लू से त्वचा झुलस जाने पर कच्चे आलू का रस झुलसी त्वचा पर लगाना लाभदायक है।
गठिया- कण्डों पर चार आलू भूनकर उनका छिलका उतारकर आलूओं में नमक मिर्च डालकर खाना गठिया में लाभप्रद है।
आमवात- आलू खाना आमवात में लाभदायक है।
उच्च रक्त चाप- पानी में नमक डालकर आलू उबालकर छिलका सहित ही रोगी को खिलाये।
त्वचा की झुर्रियां- सर्दी में हाथों की त्वचा पर झुर्रियां पड़ जाने की स्थिति में कच्चा आलू पीसकर हाथो पर मलें।
विशेष- कच्चे आलू के स्थान पर निबू का रस हाथों पर मलना भी लाभप्रद होता है।
दाद, फुन्सियां, गैस, स्नायविक तथा मांसपेशियों के रोग होने पर कच्चे आलू का रस पीये।
अम्लता- भोजन में नियमित रूप से आलू का सेवन करने से अम्लता दूर होती है।
आलू पीसकर त्वचा पर मलने से रंग गोरा हो जायेगा।
गुर्दे की पथरी- गुर्दो में पथरी होने पर केवल कच्चा आलू पीसकर लगाना आरामदायक होता है।
घूटनों में सूजन व जोड़ों में दर्द होने पर कच्चा आलू पीसकर लगाना आरामदायक होता है।
वातरक्त- कच्चे आलू को पीसकर अंगूठे पर लगाने से दर्द समाप्त हो हो जाता है।
-::- 1 मिनट में हार्ट अटैक का ख़तरा टालें -::-
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"सहारा आयुर्वेदिक"
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किसी को हार्ट अटैक आता देखकर घबरा जाना स्वाभाविक है। परंतु बिना धैर्य खोए आप मरीज की जान बचाने के लिए जरूरी कदम उठा सकते हैं। क्या आप जानते हैं एक ऐसा उपाय जिसका असर एक मिनट में होता है और मरीज की जान बच सकती है।
लाइफस्टाइल में बड़े पैमाने पर आ चुके बदलाव ने ह्रदय की कार्यक्षमता को प्रभावित किया है। हार्ट अटैक की घटनाओं में पिछले कुछ सालों में जबरदस्त उछाल दर्ज किया गया है। ऐसे मौकों पर मरीज की हालत देखकर आसपास के लोग डर जाते हैं। इस घबराहट के बीच सिर्फ व्यक्ति को अस्पताल ले जाने का खयाल दिमाग में कौंधता है। परंतु मरीज की बिगड़ती हालत के चलते कुछ उपाय भी अपनाए जाना जरूरी हैं। जिससे अस्पताल पहुंचने के पहले मरीज़ की जान बचाई जा सके। अधिकतर लोग इस बात से अनजान रहते हैं हर घर में एक ऐसा पदार्थ मौजूद है जो एक मिनिट में हार्ट अटैक से मरीज़ की जान बचा सकता है।
लाल मिर्च के खास गुणों के चलते इस पर कई शोध किए जा चुके हैं। शोधकर्ताओं के सामने इसके कई आश्चर्यजनक पहलू सामने आए हैं। एक प्रसिद्ध हर्बल उपायों से चिकित्सा करने वाले डॉक्टर ने माना है उनके 35 साल के लंबे करियर में उनके पास आए सभी हार्ट अटैक मरीजों की जान बचाई जा सकी। जिसमें लाल मिर्च के इस्तेमाल से बना एक घोल सबसे ज्यादा कारगर साबित हुआ। लाल मिर्च के खास गुण इसमें पाए जाने वाले स्कोवाइल ( Scoville ) की वजह से होते हैं। लाल मिर्च में कम से कम 90,000 युनिट स्कोवाइल पाया जाता है।
अगर आप किसी को
भी हार्ट अटैक आते देखते हैं तो एक चम्मच लाल मिर्च एक ग्लास पानी में
घोलकर मरीज को दे दीजिए। एक मिनट के भीतर मरीज की हालत में सुधार आ जाएगा।
इस घोल का असर सिर्फ एक अवस्था में होता है जिसमें मरीज का होश में होना
आवश्यक है।
ऐसे हालात जिनमें मरीज बेहोशी की हालत में हो दूसरे उपाय को
अपनाया जाना बेहद जरूरी है। लाल मिर्च का ज्यूस बनाकर इसकी कुछ बूंदें
मरीज की जीभ के नीचे डाल देने से उसकी हालत में तेजी से सुधार आता है।
लाल मिर्च में एक शक्तिशाली उत्तेजक पाया जाता है। जिसकी वजह से इसके उपयोग से ह्रदय गति बढ़ जाती है। इसके अलावा रक्त का प्रवाह शरीर के हर हिस्से में होने लगता है। इसमें हेमोस्टेटिक (hemostatic) प्रभाव होता है जिससे खून निकलना तुरंत बंद हो जाता है। लाल मिर्च के इस प्रभाव के कारण हार्ट अटैक के दौरान मरीज़ को ठीक होने में मदद मिलती है।
हार्ट अटैक से बचाव के लिए तुंरत उपयोग करने हेतु एक बेहद कारगर घोल बनाकर रखा जा सकता है। लाल मिर्च पाउडर, ताज़ी लाल मिर्च और वोदका (50 % अल्कोहल के लिए) के इस्तेमाल से यह घोल तैयार किया जाता है।
कांच की बोतल में एक चौथाई हिस्सा लाल मिर्च से भर दीजिए। इस पाउडर के डूबने जितनी वोदका इसमें मिला दीजिए। अब मिक्सर में ताजी लाल मिर्च को अल्कोहल के साथ में सॉस जैसा घोल तैयार कर लीजिए। इस घोल को कांच की बोतल में बाकी बचे तीन चौथाई हिस्से में भर दीजिए। अब आपकी बोतल पूरी तरह से भर चुकी है। कांच की बोतल को कई बार हिलाइए। इस मिश्रण को एक अंधेरी जगह में दो हफ्तों के लिए छोड दीजिए। दो हफ्तों बाद इस मिश्रण को छान लीजिए। अगर आप ज्यादा असरकारक मिश्रण चाहते हैं तो इस घोल के तीन माह के लिए अंधेरी जगह पर छोड़ दीजिए।
हार्ट अटैक आने के बाद होश में बने रहने वाले मरीज़ को इस मिश्रण की 5 से 10 बूंदें दी जानी चाहिए। 5 मिनट के अंतराल के बाद फिर से उतनी मात्रा में यह घोल मरीज को दिया जाना चाहिए। 5 मिनिट के अंतराल के साथ मरीज की हालत में सुधार आने तक यह प्रक्रिया दोहराई जा सकती है। अगर मरीज बेहोश है तो उसकी जीभ के नीचे इस मिश्रण की 1 से 3 बूंदे डाल दी जानी चाहिए। इस प्रक्रिया को तब तक दोहराया जाना चाहिए जब तक मरीज की हालात में सुधार न आ जाए।
वैज्ञानिक शोधों से साबित हो चुका है लाल मिर्च में 26 अलग प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। कैल्शियम, ज़िंक, सेलेनियम और मैग्निशियम जैसे शक्तिशाली तत्वों से भरपूर लाल मिर्च में कई मिनरल के अलावा विटामिन सी और विटामिन ए की भी भरपूर मात्रा होती है। हर भारतीय घर में मसाले का अभिन्न हिस्सा लाल मिर्च में ह्रदय को स्वस्थ रखने के कुछ बेहद खास और विस्मयकारी गुण पाए जाते हैं। किसी भी तरह की ह्रदय संबंधी समस्या से बचने में लाल मिर्च बहुत कारगर है।
-::- चर्बी (Fat) -::-
पेट की चर्बी घटाना आसान है पर वहीं पर पेट के निचले भाग की चर्बी घटाना थोड़ा मुश्किैल है। हमारी लाइफस्टा इल कुछ ऐसी हो चुकी है कि हम ना चाह कर भी अपने शरीर का वजन बढ़ाते चले जा रहे हैं। कुछ लड़कियों का पूरा शरीर देखने में पतला लगता है पर पेट काफी ज्याकदा निकला होता है।
लेकिन जब आप किलो भर वजन कम करने लगेगीं तो ‘बैली फैट’ अपने आप ही खतम होने लगेगा। बैलेंस डाइट और रेगुलर एक्स्रसाइज करने से आप अपना वज़न कंट्रोल कर सकते हैं।
* आपको कुछ ऐसे फूड बताउंगा जिसे खाने से आप अपने पेट के निचले भाग की चर्बी को कमकर सकते हैं। मैं आपको कोई डाइट करने के लिये नहीं बोल रहा हूँ, बल्कि यह ऐसे खाघ l पदार्थ हैं, जो जल्दी से वजन कम करते हैं, जैसे नींबू पानी, जड़ी बूटियां, ग्रीन टी आदि।
* पेट के नीचे की चर्बी को घटाने के लिये हर रोज 7 से 8 गिलास पानी जरुर पियें। इससे शरीर की गंदगी बाहर निकलेगी और आपका मैटाबॉलिज्म बढेगा।
जड़ी बूटियां.....
* आपको सोडियम लेना कम करना होगा नहीं तो शरीर में पानी की मात्रा बढेगी और आप मोटे लगेगें। भोजन में नमक की मात्रा को केंट्रोल करें और इसे कंट्रोल करने के लिये कुछ तरह की जड़ी बूटियों का सेवन करें। त्रिफला खाएं और वजन घटाएं। आंवला या आंवले के जूस का सेवन भी कर सकतें हैं……
* शहद का सेवन करे ...मोटापा बढने की एक और वजह है, वह है चीनी की मात्रा। चीनी की जगह पर आप शहद का सेवन कर सकते हैं।
* दालचीनी पावडर से .... आप अपनी सुबह की कॉफी या चाय में दालचीनी पाउडर डाल कर ब्लफड शुगर को कंट्रोल कर सकती हैं। यह एक चीनी को रिपलेस करने का एक अच्छाअ तरीका भी है।
* मेवे खाये ... फैट को कम करने के लिये आपको फैट खाना पडे़गा। जी हां, कई लोग इस बात पर यकीन नहीं करते हैं, लेकिन मेवों में अच्छा. फैट पाया जाता है। तो ऐसे में आप बादाम, मूगंफली और अखरोट आदि का सेवन करें। इनमें हेल्दीग फैट होता है जो शरीर के लिये जरुरी होता है।
* एवोकाडो का सेवन भी फायदे मंद है .. इसमे ऐसा वसा होता है जो शरीर के लिये आवश्यीक होता है। इसका जूस पीने से आपका पेट पूरे l दिन भरा रहेगा और आप ओवर ईटिंग नहीं करेगें।
* संतरा ले ... आप को जब भी भूख लगे , तो उस समय अपने पर्स या बैग में संतरे रखें। इससे पेट भी भरा रहेगा और आप मोटे भी नहीं
होगें।
* दही खाये .... अगर आपको पतला होना है तो अनहेल्दीो डेजर्ट खाने से बचें और इसकी जगह पर दही खाएं। इसमें बहुत सारा पोषण होता है और कैलोरी बिल्कुपल भी नहीं होती।
* ग्रीन टी दिन में एक कप ग्रीन टी पीने से लाभ मिलता है। इससे शरीर का मैटाबॉलिज्मस बढता है और फैट बर्न होता है।
* सालमन.... इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है जो कि शरीर के लिये जरुरी वसा है और शरीर को अच्छेट से कार्य करने के लिये मदद करता है। यह फैट आपका पेट पूरे दिन भरा रखता है और ज्याैदा खाने से बचाता है।
* ब्रॉकली खाये ... इसमें विटामिन सी होता है और साथ ही यह शरीर में एक तत्वर बनाता है जो कि शरीर फैट से एनर्जी को बदलने में प्रयोग करता
* नींबू का प्रयोग करे .... रोज सुबह नींबू पानी पीने से आपकी चर्बी कम हो सकती है। अगर पानी गर्म हो तो और भी अच्छाज है। इसमें शहद मिला कर पीजिये।
* कच्चाा लहसुन चबाने से पेट की निचले भाग की चर्बी कम होगी। अगर इसमें थोड़ा सा नींबू का रस छिड़क दिया जाए तो और भी अच्छाप। इससे पेट भी कम होगा और ब्ल ड सर्कुलेशन भी अच्छाग रहेगा।
* अपने भोजन में अदरक शामिल करें क्योंहकि इसे खाने से पेट के निचले भाग की चर्बी कम होती है। इसमें एंटीऑक्सीजडेंट होता है जो कि इंसुलिन को बढने से रोकता है और ब्लिड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है।
जोड़ों के दर्द का अचूक इलाज है यह तेल
बाजार में सैकडों दर्द निवारक तेल बिक रहे हैं और किस तेल का कितना असर है कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं, आप खुद ही घर पर बैठकर एक अच्छा दर्द निवारक तेल तैयार कर सकते हैं। आदिवासियों के ज्ञान पर आधारित इस नुस्खे के क्लिनिकल प्रमाण भी चौंकाने वाले हैं।
काली उडद (करीब 10 ग्राम), बारीक पीसा हुआ अदरक (4 ग्राम) और पिसा हुआ कर्पूर (2 ग्राम) को खाने के तेल (50 मिली) में 5 मिनिट तक गर्म किया जाए और इसे छानकर तेल अलग कर लिया जाए।
जब तेल गुनगुना हो जाए तो इस तेल से दर्द वाले हिस्सों या जोड़ों की मालिश, जल्द ही दर्द में तेजी से आराम मिलता है, ऐसा दिन में 2 से 3 बार किया जाना चाहिए। यह तेल आर्थरायटिस जैसे दर्दकारक रोगों में भी गजब काम करता है।
खर्राटे निकलने के कारण
खर्राटे निकलना सोने के समय एक आम बात है , परन्तु लम्बे समय तक इस प्रकार के समस्या के होने से लोगो पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है | वैसे तो खर्राटे निकलने के कई कारण है परन्तु इनके मुख्या कारणों में हमारे गले की स्वांस नाली में संकुचन होना है | इसके अलावा – जैसे ;
स्वांस नली की उपरी दीवाल जो हमारे नाक से जुड़े होते है | उसमें सिकुड़न होने से |
हमारे सोने की तरीको से , लम्बे समय तक एक ही मुद्रा में सोने से |
ठन्डे मौसम के कारण |
ठंडी चीजो के सेवन करने से |
धुम्रपान एवं अल्कोहल की अधिक मात्रा का सेवन से |
किसी कारण वस अगर गले में संक्रमण के कारण गले में सुजन होने पर भी खर्राटे आते है |
खर्राटे से सम्बंधित समस्या से बचने के कुछ आसान उपाए / Few simple home remedies to get rid of Snoring
अपने सोने की तरीको को बदले (try to change your sleeping habit ); अगर आप को एक ही मुद्रा में सोने की अददत है तो ये आपको खर्राटें जैसी समस्याओ से ग्रसित कर सकती है | आप सोने के समय करवट बदल के सोने की प्रयास करे |
अपने नाक की साफ सफाई में ध्यान दे (keep your noise clean) ; खर्राटे जैसी समस्याओ का मुख्या कारण हमारे स्वांस नली में पड़ने वाली बाधा है, जो नाक में जमी धुल मिट्टियों के कारण भी हो सकती है अत हमें हमारे नाक को साफ रखना चाहिए |
धूम्रपन से परहेज (avoid smocking); धूम्रपन किसी भी शुरात में सेहत के लिए हानिकारक साबित होता है | अत इसके परहेज करने से भी खर्राटे जैसी समस्या से बचा जा सकता है |
गर्म पानी (drink hot water) ; रोजाना सोने से पहले गर्म पानी पिए | इस्से गले की स्वांस नली खुलती है और खर्राटे नहीं आते है |
एक ग्लास गर्म पानी रोजाना सोने से पहले पिए |
गर्म पानी से गर्गिल (gargil with hot water) ; गर्म पानी से गर्गिल करने से गले में होने वाली सुजन से रहत मिलती है , जिससे भी खर्राटे होने से बचा जा सकता है |
एक ग्लास गर्म पानी ले |
1 चम्मच नमक ले कर उस गर्म पानी में घोल दे |
दिन में दो बार सुबह उठने के बाद एवं रात में सोने से पहले पानी से गर्गिल करे |
शहद (honey) ; शहद में कई प्रकार के medicinal गुण पाया जाता है| रोजाना
शाहद के इस्तेमाल से गले में होने वाली तकलीफ दूर होती है |
रोजाना 2 से 3 बार एक चम्मच शहद का सेवन करे |
सोने से पहले एक चम्मच शहद जरुर ले |
Have 2-3 tablespoon of pure honey and if required then 1 glass of warm water before going to bed.
लहसुन और सरसों के तेल से मालिस (garlic and mustard oil massage) ; लहसुन को सरसों के तेल बहुत हे लाभकारी है और वायरल fever में काफी काम आता है | लहसुन को सरसों के तेल को गर्म करके गले एवं छाती की मालिस करने से स्वांस लेने में होने वाली रुकावट दूर होती है |
दो चार लह्सुन के दाने से छिलका निकल ले , फिर उसे हलके से कूच कर छोटे छोटे दाना में बदल दे |
4 या 5 चम्मच सरसों के तेल को किसी बर्तन में डाल ले फिर उसमे लहसुन के टुकडो को डाल कर लाल होने तक गर्म करे |
रोजाना सोने से पहले उसके गर्म तेल से अपनी छाती एवं गर्दन की massage करे |
ठडे पानी या ठंडी चीजो से परहेज (avoid cold things) ; ठन्डे पानी के कारण
या कोई भी ठंडी चीज जैसे सीतल पेय, कुल्फी, आइसक्रीम अदि का इस्तेमाल से
हमारे गले में सिकुड़न होने लगता है, अत इन सब चीजो का सेवन कम कर दे
-::- लहसुन के वैदिक फायदे -::-
लहसुन का सेवन करना आपके शरीर के लिए बेहद फायदेमंद है। लहसुन का आयुर्वेद में अहम महत्व है। लहसुन में विटामिन ए, बी, और सी पाए जाते हैं। लहसुन में छिपे गुणों को यदि आप जानेंगे तो आप इसका उपयोग रोज करेगें। आइये आप को बताते हैं लहसुन में छिपे गुणों को।
लहसुन( garlic)के वैदिक फायदे
1. लहसुन कैंसर जैसी भयंकर बीमारी की रोकथाम करने में आपके शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। लहसुन की कच्ची कली खाना प्रोस्टेट कैंसर में फायदेमंद है। यह ब्रेस्ट कैंसर को भी रोकता है।
2. दांत के दर्द में लहसुन का सेवन फायदेमंद है। यदि कीड़ा लगने से दांत में दर्द हो तो आप लहसुन के टुकड़ों को गर्म करें और उन टुकड़ों को दर्द वाले दांत पर रखकर कुछ देर तक दबाएं। एैसा करने से दांत का दर्द ठीक हो जाता है।
3. फ्लू यानी इन्फलुएन्जा में सुबह उठकर गर्म पानी के साथ लहसुन और प्याज का रस पीने से फ्लू से निजात मिलता है।
4. रोज सुबह में लहसुन की 2 कली छीलकर पानी के साथ निगल लेने से हाई ब्लडप्रेशर काबू होता है।
5. गर्भावस्था (pregnancy) के दिनों में गर्भवती महिलाओं को लहसुन का सेवन नियमित करना चाहिए एैसा मां और उसके बच्चे के लिए फायदेमंद होता है और गर्भ में शिशु को पोषण भी मिलता है।
6. लहसुन खाने से ट्यूमर को 70 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
7. लहसुन पूरी तरह से एंटीबायोटिक है। इसलिए फोड़े होने पर लहसुन को पीसकर उसकी पट्टी बांधने से फोड़े मिट जाते हैं।
8. टीबी और खांसी जैसी बीमारियों को दूर करने में लहसुन लाभकारी है। लहसुन के रस की बूंदों को रूई में भिगोकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।
9. यह जोड़ों और गठिया के रोग में बहुत लाभकारी है।
10. यदि रोज आप लहसुन की 5 कलियां खायें तो आप हृदय संबंधी रोगों से बचे रहेगें।
11. लहसुन आपके बालों को काला करने में भी सक्षम है, 10 ग्राम शहद में लहसुन की 5 कलियों को पानी के साथ पीस लें और इस मिश्रणं को सुबह-शाम लेते रहें।
12. लहसुन शुगर यानी डायबिटिज के बढ़े स्तर को नियंत्रित करता है।
13. लहसुन की दो पिसी कलियां अदरक की गरम चाय के साथ लेने से अस्थमा की बीमारी से निजात मिलता है।
14. लहसुन के तेल की मालिश से बदन दर्द दूर हो जाता है।
15. ठंठ के दिनों में लहसुन खाने से ठंठ नहीं लगती।
बुखार शरीर का कुदरती सुरक्षा तंत्र है जो संक्रमण से मुक्ति दिलाता है।
इसलिये बुखार कोई बीमारी नहीं है।
शरीर का बढा हुआ तापमान रोगाणुओं के प्रतिकूल होता है। लेकिन ज्वर जब 40
डिग्री सेल्सियस अथवा 104 डिग्री फ़ारेनहीट से ज्यादा हो जाता है तो समस्या
गंभीर हो जाती है। थर्मामीटर से दिन में कई बार बुखार नापते रहना उचित है।
मुख में जिव्हा के नीचे 2 मिनट तक थर्मामीटर रखने पर समान्य तापमान 98.4
डिग्री फ़ारेनहीट होता है। इससे ज्यादा तापमान होने पर बुखार समझना चाहिये।
बुखार आने के कई कारण हो सकते हैं लेकिन सर्दी-खांसी, थकावट, चिंता,
रोगाणुओं का संक्रमण और दिमागी तनाव प्रमुख कारण होते हैं। घरेलू चिकित्सा
से ज्वर दूर करना प्रयोजनीय और हितकारी है।
1.....ललाट और सिर पर बर्फ़ या पानी की गीली पट्टी रखें। इससे आपके शरीर का तापमान शीघ्र ही नीचे आ जाएगा।
2.....बुखार में होने वाले शारीरिक दर्दों के निवारण के लिये हाथ, पैर, ऊंगलियां, गर्दन, सिर, पीठ पर सरसों के तेल की मालिश करवानी चाहिये। इससे शारीरिक पीडा शांत होगी और सूकून मिलेगा।
3.....शरीर पर मामूली गरम पानी डालते हुए स्नान करें इससे शरीर का तापमान बढेगा । शरीर का तापमान ज्यादा होने पर बुखार के रोगाणु नष्ट होंगे। यह प्रक्रिया ज्वर रहित अवस्था में करना है।
4.....बुखार अगर 102 डिग्री फ़ारेनहीट से ज्यादा न हो तो यह स्थिति हानिकारक नहीं है। इससे शरीर के विजातीय पदार्थों का निष्कासन होता है और शरीर को संक्रमण से लडने में मदद मिलती है।मामूली बुखार होते ही घबराना और गोली-केप्सूल लेना उचित नहीं है।
5.....बुखार की स्थिति में आईसक्रीम खाना उपयोगी है। इससे तापक्रम सामान्य होने में सहायता मिलती है।
6.....बुखार मे अधिक पसीना होकर शरीरगत जल कम हो जाता है इसकी पूर्ति के लिये उबाला हुआ पानी और फ़लों का जूस पीते रहना चाहिये। नींबू पानी बेहद लाभकारी है।
7.....रोगी को अधिक मात्रा में उबला हुआ या फ़िल्टर किया हुआ पानी पीना चाहिये। इससे अधिक पेशाब और पसीना होकर शरीर की शुद्धि होगी। जहरीले पदार्थ बाहर निकलेंगे।
8.....चाय बनाते वक्त उसमें आधा चम्मच दालचीनी का पावडर,,दो बडी ईलायची, दो चम्मच सोंठ का पाउडर डालकर खूब उबालें। दिन में 2-3 बार यह काढा बनाकर पियें। बुखार का उम्दा ईलाज है।
9.....तुलसी की 10 पती और 4 नग काली मिर्च मुंह में भली प्रकार चबाकर खाएं। यह बहुत उपयोगी चिकित्सा है।
10.....रात को सोते वक्त त्रिफ़ला चूर्ण एक चम्मच गरम जल के साथ लें। त्रिफ़ला चूर्ण में ज्वर नाशक गुण होते हैं। इससे दस्त भी साफ़ होगा बुखार से मुक्ति का उत्तम उपचार है।
11.....बुखार के रोगी को भली प्रकार दो तीन कंबल ओढाकर पैर गरम पानी की बाल्टी में 20 मिनिट तक रखना चाहिये। इससे पसीना होने लगेगा और बुखार उतर जाएगा।
12.....ज्वर रोगियों के लिये संतरा अमृत समान है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है, तुरंत उर्जा मिलती है और बिगडे हुए पाचन संस्थान को ठीक करता है।
13.....एक चम्मच मैथी के बीज के पावडर की चाय बनाकर दिन में दो बार पीने से ज्वर में लाभ होता है।
14.....एक प्याज को दो भागों में काटें। दोनों पैर के तलवों पर रखकर पट्टी बांधें। यह उपचार रोगी के शरीर का तापमान सामान्य होने में मदद करता है।
15..... रोगी को तरल भोजन देना चाहिये। गाढा भोजन न दें। सहज पचने वाले पदार्थ हितकारी हैं। उबली हुई सब्जियां, दही और शहद का उपयोग करना चाहिये। ताजा फ़ल और फ़लों का रस पीना उपादेय है। 150 मिलि की मात्रा में गाय का दूध दिन में 4-5 बार पीना चाहिये।
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