कुछ स्त्रियां माहवारी के न आने पर दवाइयों का सेवन करना शुरू कर देती है। इस प्रकार की दवा का सेवन महिलाओं के लिए हानिकारक होता है। इसलिए जैसे ही यह मालूम चले कि आपने
गर्भाधारण कर लिया है तो अपने रहन-सहन और खानपान पर ध्यान देना शुरू कर
देना चाहिए। गर्भधारण करने के बाद महिलाओं को किसी भी प्रकार की दवा के
सेवन से पूर्ण डाक्टरों की राय लेना अनिवार्य होता है। ताकि आप कोई ऐसी
दवा का सेवन न करें जो आपके और होने वाले बच्चे के लिए हानिकारक होता है।
यदि महिलाओं को शूगर का हो तो इसकी चिकित्सा गर्भधारण से पहले ही करनी
चाहिए। यदि मिर्गी , सांस की शिकायत या फिर टीबी का रोग हो तो भी इसके लिए
भी डाक्टर की सलाह ले लेनी
चाहिए। यहीं नहीं, यह भी सत्य है कि आपके
विचार और आपके कार्य भी गर्भाधारण के समय ठीक और अच्छे होने चाहिए ताकि
होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव पड़े। जैसे ही पुष्टि हो जाती है कि आप
गर्भवती हैं उसके बाद से प्रसव होने तक आप किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ की
निगरानी मे रहें तथा नियमित रुप से अपनी चिकित्सीय जाँच कराती रहें।
गर्भधारण के समय आपको अपने रक्त वर्ग (ब्ल्ड ग्रुप), विशेषकर आर. एच.
फ़ैक्टर की जांच करनी चाहिए। इस के अलावा रूधिरवर्णिका (हीमोग्लोबिन) की भी
जांच करनी चाहिए। यदि आप मधुमेह , उच्च रक्तचाप , थाइराइड आदि किसी, रोग
से पीड़ित हैं तो, गर्भावस्था के दौरान नियमित रुप से दवाईयां लेकर इन
रोगों को नियंत्रण में रखें। गर्भावस्था के प्रारंभिक कुछ दिनों तक जी
घबराना, उल्टियां होना या थोड़ा रक्त चाप बढ़ जाना स्वाभाविक है लेकिन यह
समस्याएं उग्र रुप धारण करें तो चिकित्सक से सम्पर्क करें। गर्भावस्था के
दौरान पेट मे तीव्र दर्द और योनि से रक्त स्राव होने लगे तो इसे गंभीरता से
लें तथा चिकित्सक को तत्काल बताएं। गर्भावस्था मे कोई भी दवा- गोली बिना
चिकित्सीय परामर्श के न लें और न ही पेट मे मालिश कराएं। बीमारी कितना भी
साधारण क्यों न हो, चिकित्सक की सलाह के बगैर कोई औषधि न लें। यदि किसी नए
चिकित्सक के पास जाएं तो उसे इस बात से अवगत कराएं कि आप गर्भवती हैं
क्योकि कुछ दवाएं गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव छोडती है। चिकित्सक की सलाह
पर गर्भावस्था के आवश्यक टीके लगवाएं व लोहतत्व (आयर्न) की गोलियों का सेवन
करें। गर्भावस्था मे मलेरिया को गंभीरता से लें, तथा चिकित्सक को तत्काल
बताएं। गंभीरता से चेहरे या हाथ-पैर मे असामान्य सूजन, तीव्र सिर दर्द,
आखों मे धुंधला दिखना और मूत्र त्याग मे कठिनाई की अनदेखी न करें, ये खतरे
के लक्षण हो सकते हैं। गर्भ की अवधि के अनुसार गर्भस्थ शिशु की हलचल जारी
रहनी चाहिए। यदि बहुत कम हो या नही हो तो सतर्क हो जाएं तथा चिकित्सक से
संपर्क करें। आप एक स्वस्थ शिशु को जन्म दें, इस के लिए आवश्यक है कि
गर्भधारण और प्रसव के बीच आप के वजन मे कम से कम 10 कि.ग्रा. की वृद्धि
अवश्य हो। गर्भावस्था में अत्यंत तंग कपडे न पहनें और न ही अत्याधिक ढीले।
इस अवस्था में ऊची एड़ी के सैंडल न पहने। जरा सी असावधानी से आप गिर सकती
है इस नाजुक दौर मे भारी श्रम वाला कार्य नही करने चाहिए, न ही अधिक वजन
उठाना चाहिए। सामान्य घरेलू कार्य करने मे कोई हर्ज नही है। इस अवधि मे बस
के बजाए ट्रेन या कार के सफ़र को प्राथमिकता दें। आठवें और नौवे महीने के
दौरान सफ़र न ही करें तो अच्छा है। गर्भावस्था मे सुबह-शाम थोड़ा पैदल
टहलें। चौबीस घंटे मे आठ घंटे की नींद अवश्य लें। प्रसव घर पर कराने के
बजाए अस्पताल , प्रसूति गृह या नर्सिगं होम में किसी कुशल स्त्री रोग
विशेषज्ञ से कराना सुरक्षित रहता है।
गर्भावस्था मे सदैव प्रसन्न रहें। अपने शयनकक्ष मे अच्छी तस्वीर लगाए। हिंसा प्रधान या डरावनी फ़िल्में
या धारावाहिक न देखें।
[ तथ्य वांछित ]
गर्भावस्था सुझाव सामान्य गर्भावस्था में भी किन- किन रोगों का परीक्षण
नियमित रूप से किया जाता है? लगभग सभी सामान्य गर्भों के दौरान एड्स,
हैपेटिटिस – बी, साईफिलिस, आर एच अनुपयुक्तता और रूबेला का नियमित परीक्षण
किया जाता है। गर्भकाल में अलग-अलग समय पर रक्त के सैम्पल लेकर डॉक्टर इन
स्थितियों का परीक्षण करते हैं। जन्मजात रोगों के सम्बन्ध में व्यक्ति को
कब चिन्ता करनी चाहिए? आपके बच्चे को जन्मजात रोगों का खतरा अधिक हो सकता
है यदि वह निम्नलिखित तीन कारणों में से किसी में आता है।
(1) पहले बच्चे में जन्मजात रोग (2) परिवार में जन्मजात विकारों का इतिहास जिनके दोहराये जाने
की सम्भावना रहती है। (3) यदि मां की उम्र 35 वर्ष से अधिक हो तो बच्चे में अभावपरक संलक्षणों का खतरा बढ़ जाता है।
क्या सामान्य रक्त परीक्षणों से जन्मजात विकारों को परखा जा सकता है ?
अध्ययन से पता चलता है कि प्रसव पूर्व होने वाली रक्त की जांचों से 90
प्रतिशत जन्मजात विकारों का पता नहीं चल पता है। जाने जा सकने योग्य 10
प्रतिशत जन्मजात रोगों के लिए अलग से चार प्रकार के टैस्ट हैं –
एमनियोसेन्टीसिस, करौलिक विलि सैम्पलिंग, अल्फा फैटो प्रोटीन (ए एफ पी)
जैसे टैस्ट और अल्ड्रासाउण्ड स्कैनस।
स्वास्थ्य परक आहार पर इतना अधिक जोर क्यों दिया जाता है?
अपने अजन्में बच्चें के पोषण की आप एकमात्र स्रोत हैं, आपके खाने की
प्रवृत्ति का बच्चे के स्वास्थ्य और कुशल क्षेम पर प्रभाव पड़ता है। बड़ी
हुई जरूरत को पूरा करने के लिए आप के शरीर को पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है।
गर्भवती माँ को कितनी कैलोरी की जरूरत होती है?
गर्भवस्था के प्रारम्भिक महीनों में आप को अपने आहार में बदलाव लाने
की जरूरत नहीं है। गर्भ के बढ़ने के साथ साथ आप को कैलोरी की मात्रा में
लगभग 300 अतिरिक्त कैलोरिस जोड़ लेने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसा सामान्यतः
दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर
में होता है। यहि आप अधिक खाते हैं तो आप का
ही वज़न बढ़ेगा न कि आपके बच्चे का। इसलिए ध्यान रखें कि आप बरगर, तले
पदार्थ, बिस्कुट जैसे केवल कैलोरी बढ़ाने वाले पदार्थ न लें। वस्तुतः आप को
जरूरत होती है – प्रोटीन कार्बोहाइड्रेटस एवं मिनरल तथा विटामिन युक्त
भोजन की जैसे कि चपाती, दालें, सोया, दूध अण्डे और सामिष भोजन, मेवे, हरे
पत्तों वाली सब्जियां और ताजे फल।
लोग कहते हैं कि गर्भवती महिला दो जनों के लिए खाती है?
गर्भ के कारण आप को दो के बराबर खाने की जरूरत नहीं है। सच यह है कि अगर
आप दो के बराबर खायेंगे तो आप का वज़न इतना बढ़ जायेगा कि आप अपने लिए
अनावश्यक रूप से परेशानियां बढ़ा लेंगी और बाद में उसे घटाने में बहुत
परेशानी होगी।
गर्भवती महिला के लिए सन्तुलित भोजन कौन सा होता है?
गर्भकाल के दौरान आप के आहार में निम्नलिखित होने चाहिए -
१ बार श्रेष्ठतम प्रोटीन – अण्डा, सोयाबीन, सामिष।
2 बार विटामिल सी युक्त पदार्थ – रसीले फल, टमाटर4 बार कैलशियम
प्रधान पदार्थ (गर्भकाल में 4 बार स्तनपान में 5 बार) जैसे दूध, दही। [1] 3
बार हरी पत्तों वाली और पीली सब्जियां या फल पालक, बथुआ, छोले, सीताफल,
पपीता, गाजर। 1/2 बार अन्य फल एवं सब्जियां – बैंगन, बन्द गोभी4-5 बार
साबुत अनाज और मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस – चपाती चावल8-10 गिलास पानीडॉक्टर
के परामर्श के अनुसार आहार परक दवाएं।
एक गर्भवती महिला को किन आहार पूरक दवाओं की जरूरत होती है?
एक गर्भवती महिला को अपने आहार में विटामिन, आयरन और कैलशियम की जरूरत
रहती है। आयरन फोलिक और कैलशियम की गोलियां सभी सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों
में मुफ्त उपलब्ध रहती हैं। ये दवाएं आमतौर पर सुविधा से उपलब्ध होती हैं
कौन सी दवा लेनी है इसका सुझाव डॉक्टर से
लेना चाहिए।
स्वस्थ गर्भ में कितने वज़न का बढ़ना आदर्श माना जाता है?
महिला का वज़न औसतन 11 से 14 किलो के बीच बढ़ना चाहिए।
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न के बढ़ने का श्रेष्ठतम स्वरूप क्या है?
ट्रिमस्टर के अनुसार वज़न बढ़ने का आदर्श स्वरूप इस प्रकार है।
1. पहला ट्रिमस्टर – 1 से 2 किलो , 2. दूसरा ट्रिमस्टर 5 से 7 किलो,3. चार से पांच किलो।
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय का पीना क्या सुरक्षित है?
गर्भ के दौरान चाय, कॉफी अथवा फिजिपेय पदार्थों का पान बहुत सीमित होना चाहिए। कम पोषक
तत्व वाले खाद्य पदार्थों की तीव्र इच्छा को कैसे वश में करें। या किसी अस्वास्थ्यकारी वस्तु के लिए तीव्र
इच्छा जागृत हो तो पहले अपने मन को उधर से हटायें या उसका विकल्प ढूंढ
लें। अगर फिर भी मन न माने तो जो भी लें थोड़ सा लें, अपने मन को समझा लें
कि अपने बच्चे की पोषक परक जरूरतों से आपने कोई समझौता नहीं करना है।
यदि किसी विशिष्ट अखाद्य पदार्थ को खाने की अनोखी इच्छा जगे तो कोई क्या करें?
डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उस में कोई पोषण परक विकार पैदा हो रहा है।
गर्भ के दौरान कब्ज से कैसे छुटकारा मिल सकता है?
कुछ गर्भवती महिलाओं का अर्धाश इस कब्ज से पीड़ित रहता है। कुछ सामान्य उपचार के साधन हैं।
(1) 1-2 गिलास जूस सहित कम से कम 8 गिलास पानी पियें।. (2) अपने भोज में अनाज, कच्चे फल और
सब्जियों की मात्रा अधिक करें उन में फाइवर अधिक हो .(3) हर रोज़ व्यायाम
करें – सैर करना व्यायाम की अच्छी शैली है। व्यायाम एवं अच्छी शारीरिक
स्थिति व्यक्ति को उसका पेट साफ
रखने में मदद देती है।. (4) अगर कब्ज बार बार होने लगे तो डॉक्टर की सलाह से कोई कब्ज निवारक दवा दें।
गर्भ के दौरान मसूड़ों का सूजना या उनसे रक्त आना स्वाभाविक क्रिया है?
गर्भ के दौरान शरीर में जो अतिरिक्त हॉरमोन आ जाते हैं उन से मसूड़े सूज
सकते हैं या उन से रक्त आ सकता है। नरम टुथब्रश लेकर नियमित रूप से ब्रश
करते रहें। गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति में दांतों का चैक अप करवा लेना
चाहिए ताकि मुख को स्वास्थ्य सही रहे।
छाती में जलन से बचने के लिए क्या करना चाहिए?
छाती की जलन से बचने के लिए
1) बार-बार परन्तु थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में 2-3 बार खाने की अपेक्षा
5-6 बार खायें। भोजन के साथ अधिक मात्रा में तरल पदार्थ न लें।
2) वायु-विकार पैदा करने वाले, मसालेदार या चिकने भोजन से बचें।
3) सोने से पहले कुछ खायें या पियें नहीं
4) खाने के दो घन्टे बाद ही व्यायाम करें।
5) शराब या सिगरेट न दियें।
6) बहुत गर्म या बहुत ठन्डे तरल पदार्थ न लें।
गर्भकाल के दौरान यौन-सम्भोग करते रहना क्या सुरक्षित होता है?
कुछ दम्पतियों को गर्भकाल में सम्भोग करने से चिन्ता होती है। उन्हें
गर्भपात का भय लगा रहता है। स्वस्थ महिला के सामान्य गर्भ की स्थिति में
गर्भ के अन्तिम सप्ताहों तक सम्भोग सुरक्षित होता है। आप और आप का साथी
आरामदायक स्थिति में सम्भोग कर सकते हैं।
गर्भकाल में टांगों में पड़ने वाले क्रैम्पस क्या सामान्य हैं?
हां, गर्भ के दूसरे और तीसरे ट्रिमस्टर में हो सकता है कि आप की टांगों में
कैम्पस बढ़ जाये। अधिक मात्रा में कैलशियम लें। (तीन गिलास दुध या दवा) और
पोटैशियम (केला संतरा) लें। सोने से पहले टांगों का खिंचाव देकर सीधा करने
से शायद आपको कुछ राहत मिले।
क्या गर्भ के दौरान यात्रा करनी चाहिए?
अधिकतर औरतें सुरक्षित रूप से यात्रा कर लेती है। जब तक कि प्रसव काल
नज़दीक नहीं आ जाता। गर्भावस्था के मध्यकाल को सब से सुरक्षित माना जाता
है। इस दौरान कम से कम
समस्याएं होती है।
गर्भकाल के दौरान व्ययाम क्यों करना चाहिए?
निम्नलिखित कारणों से व्यायाम करना चाहिए
(1) आकृति और अभिव्यक्ति में सुधार लाने के लिए
(2) पीठ दर्द से छुटकारे के लिए
(3) प्रसव काल के लिए मांसपेशियों को सशक्त बनाने और ढीले पड़े जोड़ो को सहारा देने के लिए
(4) मांसपेशियों के कैम्पस से राहत के लिए
(5) रक्त संचार को बढ़ाने के लिए
(6) लचीलेपन को बढ़ाने के लिए
(7) थकावट दूर करने के लिए ऊर्जा वृद्धि के लिए
(8) भले चंगे होने की भावना भरने और आत्मछवि के सकारात्मक विकास के लिए।
आपका डॉक्टर आप को सही ढंग से व्ययाम के सम्बन्ध में बतायेगा।
क्या व्यायाम से मेरे बच्चे को लाभ पहुंचेगा?
हां भ्रूण के लिए व्यायाम अति उत्तम है क्योंकि इस से रक्त प्रवाह बढ़ता
है और बच्चे की वृद्धि और विकास को सुधारता है। व्यायाम से बच्चे का
मस्तिष्क और अन्य टिशु श्रेष्ठ स्थिति में काम करने लगते हैं।
गर्भकाल के दौरान कौन सा व्यायाम सुरक्षित माना जाता है?
किसी प्रकार के खेल-कूद या व्ययाम को जारी रखने में कोई समस्या नहीं है,
जब तक कि वह सीमा में हो। फिर बी पहले डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
किस प्रकार का व्यायाम बिल्कुल नहीं करना चाहिए?
जॉगिंग जैसा व्यायाम रीढ, श्रोणि, नितम्बों, घुटनों स्तनों और पीठ पर बड़ा
भारी पड़ता है। इसलिए उसे नहीं करना चाहिए। जिस व्यायाम से पेट की
मांसपेशियां खिंचे जैसे टांगे उठाना, उठक बैठक भी गर्भ के दौरान नहीं करने
चाहिए। और गर्भवती नवीन चेष्टाओं से तालमेल बैठाने में शरीर को कुछ समय
लगता है। चौथे महीने के बाद, पीठ के बल लेटकर व्यायाम न करें, क्योंकि आपके
गर्भाशय का वज़न रक्त वाहिकाओं को दबा सकता है और रक्त भ्रमण में बाधा दे
सकता है।
गर्भधारण करने के कितने समय बाद तक मैं काम करती रह सकती हूँ?
जिस गर्भवती महिला को कोई समस्या न हो वह नौवें महीने तक काम करती रह सकती
है। हाँ, उन्हें कुछ सावधानियां बरतनी पडेंगी जैसे कि भारी थकान वाली
गतिविधि से बचें, सीढ़ियां चढ़ने, तापमान की अति और धुये भरे क्षेत्र से
दूर रहें। बार- बार आराम करें और यदि थकान लगे तो जल्दी ही काम से लौट
जायें यदि बहुत देर तक खड़ी रही हैं तो बैठ जायें और पैर ऊपर कर लें।
अन्तिम तीन महीनों में लम्बे समय तक खड़े रहना, भारी चीज़ों को उठाना,
मुड़ना या झुकना नहीं चाहिए। गर्भवती महिला को नियमित भोजन करना चाहिए एक
जगह बैठकर किया जाने वाला काम जिस से ज्यादा परेशानी न हो वह घर बैठने की
अपेक्षा कम दबाव वाला होता है।
गर्भकाल में निम्नलिखित तकनीकें सहायक होती हैं!
1. पीठ के बल लेटो सिर तकिये पर हो और टांगों का निचना भाग कुर्सी पर हो।
आंखें बन्द कर के 10-15 मिनट तक आराम करें। पैरों और टखनों की सूजन से भी
इस में राहत मिलती है।
2. बगल से लेटो और सिर के नीचे तकिया रख लो,
भुजा के ऊपरी भाग को और टांगों को ऊपर की ओर खीचों, घुटने के नीचे तकिया रख
लो। टांग के निचले भाग को सीधा रखो। आंखे बन्द करो और मस्तिष्क को साफ
करो। श्वास अन्दर भरो और दस तक गिनो। धीरे धीरे श्वास बाहर निकालो। पूरी
तरह विश्राम करो।
गर्भवती महिला को बाई ओर सोना चाहिए, ऐसा सुझाव डॉक्टर क्यों देते हैं?
हालांकि पीठ के बल सोना शुरू में अधिक आरामदायक हो सकता है। इस से पीठ में
दर्द और हॉरमोरोहोऑटाडस हो सकता है और पाचन, श्वसन और रक्त भ्रमण में
रूकावट आती है ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भाशय का सारा वज़न पीठ पर आ जाता है।
जबकि बाई ओर के अंगों को सीधा करने से रक्त स्राव भरपूर होता है और बीजाण्ड
का पोषण होता है, किडनी का कार्य सुचारू रूप से होता है जिस से मल का
त्याग बेहतर रूप से होता है (जिसके न होने से सूजन आता है) अतः इसे अत्यन्त
आरामदायक स्थिति माना जाना चाहिए। गर्भधारण के बारे में जाने सबकुछ किसी
महिला की पूर्णता सामान्यतौर पर तभी मानी जाती है जब वह मां बनने का सुख
प्राप्त करती है। इसके लिये उसे गर्भधारण से प्रसव तक की परिस्थितियों से
जूझना पड़ता है।
गर्भ परीक्षण क्या होता है और वह कैसे होता है?
गर्भ परीक्षण में रक्त अथवा मूत्र में उस विशिष्ट हॉरमोन को परखा जाता है
जो गर्भवती होने पर ही महिला में रहता है। ह्यूमक कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन
(एच सी जी) नामक हॉरमोन को गर्भ हॉरमोन भी कतहे हैं जब उर्वरित अण्डा
गर्भाषय से जुड़ जाता है तो आपके शरीर में एच सी जी नामक गर्भ
हॉरमोन बनता है। सामान्यतः गर्भधारण के छह दिन बाद ऐसा होता है।
गृह गर्भ परीक्षण (एच पी टी) क्या होता है?
यह गृह गर्भ परीक्षण अपना परीक्षण स्वयं करो की शैली का परीक्षण है जो कि अपने घर पर
सुगमता पूर्वक किया जा सकता है। यह सर्वसुलभ है, परीक्षण है जो कि अपने घर
पर सुगमता पूर्वक किया जा सकता है। यह सर्वसुलभ है, इसकी कीमत 40-50 रुपये
होती है। महिला को एक साफ शीषी में अपना 5 मिली मूत्र लेना होता है और
परीक्षण के लिए किट में दिए गए विशिष्ट पात्र में दो बूंद मूत्र डालना होता
है। उसके बाद कुछ मिनट तक इन्तजार करना होता है। अलग अलग ब्रान्ड के किट
इन्तजार का समय अलग अलग बताते हैं समय बीतने पर रिजल्ट विंडों पर ररिणाम को
देखें। यदि एक लाईन या जमा का चिन्ह देखे तो समझ लें कि आपने गर्भ धारण कर
लिया है। लाईन हल्की हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता। हल्की हो या स्पष्ट
अर्थ सकारात्मक माना जाता है।
एक बार पीरियड न होने पर कितनी जल्दी एच पी टी से सही सही परिणाम प्राप्त कर सकते हैं?
बहुत से एच पी टी पीरियड के निश्चित तिथि तक न होने पर 99 प्रतिशत उसी दिन सही परिणाम बताने का दावा करते हैं।
एच पी टी से नकारात्मक परिणाम पाकर भी क्या गर्भ धारण की सम्भावना हो सकती है?
हां, इसलिए अधिकतर एच टी पी महिलाओं को कुछ दिन या सप्ताह बाद पुनः परीक्षण का सुझाव देते हैं।
गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति : पहला ट्रिमस्ट रगर्भधारण के प्रारम्भिक लक्षण क्या हैं?
सामान्यतः औरतें माहवारी के न होने को गर्भधारण की सम्भावना से जोड़ती
हैं, परन्तु गर्भधारण की प्रारम्भिक स्थिति में जो अन्य लक्षण एवं चिन्हों
का अनुभव भी अधिकतर महिलाएं करती हैं इन में शामिल हैं (1) स्तनों में सूजन
महसूस करना, ढीलापन या दर्द (2) घबराहट एवं उल्टी जिसे कि पारम्परिक रूप
से प्रातःकालीन बीमारी से जोड़ा जाता है। (3) बार-बार मूत्र त्याग (4)
थकावट (5) खाने की चीज़ से जी मितलाना या तीव्र चाहत (6) मूड में उतार
चढ़ाव (7) निप्पल के आसपास का रंग गररा हो जाना (8) चेहरे के रंग का काला
पड़ना।
एक बार माहवारी का न होना क्या हमेशा गर्भ धारण का पहला चिन्ह माना जा सकता है?
एक बार माहवारी का न होना सामान्यतः गर्भ धारण का चिन्ह होता है, हालांकि
किसी किसी महिला को उस समय के आसपास कुछ रक्त स्राव हो सकता है या धब्बे
लग सकते हैं। हाँ, जिस औरत की माहवारी नियमित नहीं रहती उस को यह पता लगने
से पहले कि वास्तव में माहवारी नहीं हुई अन्य प्रारम्भिक लक्षणों से पता चल
सकता है।
प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कैसे की जाती है?
आप की अन्तिम माहवारी के पहले दिन से लेकर सामान्यतः गर्भ 40 सप्ताह तक
रहता है, यदि आप को अन्तिम माहवारी की तिथि याद हो और आपका चक्र नियमित हो
तो आप घर बैठे प्रसव की सम्भावित तिथि की गणना कर सकते हैं। यदि आप का चक्र
नियमित और 28 दिन लम्बा हो तो अन्तिम माहवारी के आधार पर (एल एम पी) आप
पहले दिन में नौ महीने और 7 दिन जोड़कर प्रसव की सम्भावित तिथि का निर्धारण
कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप की अन्तिम माहवारी 5 सितम्बर को शुरू
हुई थी तो प्रसव की सम्भावित तिथि अगले वर्ष 12 जून होगी।
गर्भ के प्रारम्भिक दिनों में क्या घबराहट और उल्टी केवब प्रातःकाल में ही होता है?
गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति से सम्बधित घबराहट और उल्टी दिन और रात में किसी भी समय हो सकती है।
गर्भ सम्बन्धिक घबराहट और उल्टी से कैसे निपटना चाहिए ?
मितली को रोकने एवं सहज करने के लिए कुछ निम्नलिखित टिप्स की आजमायें
(1) थोड़ी थोड़ी देर के बाद थोड़ा थोड़ा खायें, दिन में तीन मुख्य भोज लेने की अपेक्षा 6-8 बार ले लें। (2)
मोटापा बढ़ाने वाले तले हुए और मिर्ची वाले पदार्थ न लें। (3) जब जी
मितलाये तब स्टार्च वाली चीजें खायें जैसे रस्क या टोस्ट। अपने बिस्तर के
पास ही कुछ ऐसी चीजें रख लें ताकि सुबह बिस्तर से उठने से पहले खा सकें।
अगर आधि रात को जी मितलाये तो उन चीजों को लें (4) बिस्तर से धीरे धीरे
उठें। (5) घबराहट
होने पर नीबू चूसने का प्रयास करें।
मित्तली के लिए क्या डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए?
यदि आप को लगे कि उल्टी बहुत ज्यादा हो रही है तो डाक्टर से सलाह लेनी
चाहिए। अत्यधिक उल्टी से अन्दर का पानी खत्म हो सकता है, ऐसी स्थिति में
अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत पड़ सकती है।
गर्भावस्था में बार-बार मूत्र त्याग की जरूरत क्यों पड़ती है?
गर्भ की प्रारंभिक स्थिति में बढ़ते हुए गर्भाशय से ब्लैडर दबता है – इसी से बार-बार मूत्रत्याग करना पड़ता है।
गर्भ की दूसरी स्थिति (ट्रिमस्टर) के क्या लक्षण एवं चिन्ह होते हैं?
दूसरी स्थिति में (1) मित्तली और थकावट कम हो जाती है। (2) पेट बढ़ जाता
है (3) वज़न बढ़ता है (4) पीठ दर्द (5) पेट पर फैलाव के निशान (6) चेहरे का
रंग बदलना।
गर्भ धारण की तीसरी स्थिती (ट्रिमस्टर) के क्या लक्षण एवं चिन्ह होते हैं?
तीसरी स्थिति में निम्नलिखित लक्षण एवं चिन्ह उभरते हैं
(1) बच्चे के बढ़ने से दबाव के कारण श्वास लेने में कठिनाई बढ़ जाती है।
(2) जल्दी जल्दी मूत्र त्याग (3) छाती में जलन वाली दर्द (4) कब्ज (5) सूजे
हुए ढीले स्तन (6) अनिद्रा (5) पेट में मरोड़। अपरिपक्व प्रसव किसे कहते
हैं? 37 वें सप्ताह से पहले ही प्रसव की सम्भावना को अपरिपक्व प्रसव कहते
हैं।
अपरिपक्व प्रसव के लक्षण क्या होते हैं?
अपरिपक्व प्रसव के लक्षणों में शामिल हैं - 1. पीठ के निचले भाग में दर्द और दबाव। 2. नितम्बों पर दबाव
3. योनि से पानी जैसा गुलाबी अथवा भूरा स्राव होता है। 4. माहवारी जैसे
क्रैम्पस, घबराहट, डॉयरिहा या बदहज़मी। 5. योनि के मैम्ब्रेन का फटना। पेट
में खिचाव क्यों पड़ते हैं?
पेट में खिचाव पीड़ा विहीन होते हैं और
दसवें हफ्ते में ही शुरू हो जाते हैं परन्तु पूरी तरह वे अन्तिम ट्रिमस्टर
में ही उभरते हैं जब ये खिचाव जल्दी और ज्यादा होने लगते हैं तो कभी कभी
उसे प्रसव की प्रारम्भावस्था मान लेने की भूल भी हो जाती है।
चेतावनी संकेत गर्भ को खतरे की सूचना देने वाले कौन कौन से लक्षण होते हैं?
निम्नलिखित संकेतों को गम्भीर स्थिति का सूचक माना जा सकता है।
(1) योनि से रक्तस्राव या धब्बे लगना (2) अचानक वज़न बढ़ना (3) लगातार सिर
में दर्द (4) दृष्टि का धूमिल होना (5) हाथ पैरों का अचानक सूजना (6) बहुत
समय तक उल्टियां (7) तेज बुखार और सर्दी लगना (गर्भ की प्रारम्भिक स्थिति
में अचानक पेट में तेज दर्द (9) भ्रूण की गतिविधि को महसूस न करना।
योनि से रक्त स्राव अथवा धब्बे किस के सूचक हैं?
प्रारम्भिक महीनों में योनि से रक्त स्राव या धब्बे लगने के साथ-साथ पेट
में दर्द भी हो तो उसे सम्भावित गर्भपात की चेतावनी माना जा सकता है। बाद
के महीनों में यदि रक्त स्राव होता है तो उसे इस का संकेत माना जा सकता है
कि बीजाण्डासन (प्लैसैन्टा) बहुत नीचे है अथवा वह गर्भाशय की दीवारों से
अलग हो गया है।
अचानक वजन बढ़ना, लगातार सिर दर्द, धूमिल दृष्टि, हाथ पैरों में अचानक सूजन आना किस चीज़ के संकेत है?
ये लक्षण गर्भकाल में उच्च रक्त चाप के जिसे कि टौक्सीमिया भी कहा जाता
है, उसके सूचक हो सकते हैं। ऐसे लक्षण होने पर महिला को रक्त चाप सामान्य
करने के लिए अथवा भ्रूण परीक्षण के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत
पड़ सकती है। टौक्सीमिया से कई कठिनाइयां हो सकती है जैसे कि भ्रूण की
अपर्याप्त वृद्धि, अपरिपक्व प्रसव या प्रसव के दौरान भ्रूण पर
संकट।
गर्भकाल में तेज़ बुखार खतरनाक क्यों होता है?
ठंडी कंपकंपी के साथ तेज बुखार अथवा बिना सर्दी के तेज़ बुखार इन बात का
संकेत हो सकता है कि भ्रूण के आसपास के मैमब्रेन्स में सूजन है जिसे कि
एम्निओनिटिस भी कहते हैं। यह भ्रूण के लिए विशेषकर खतरनाक होता है और इस के
परिणामस्वरूप अपरिपक्व प्रसव भी हो सकता है।
Sahara Ayurveda
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